आतिशी से पहले भी CM की कुर्सी पर नहीं बैठे ये मुख्यमंत्री, जेब में रखते थे उनकी फोटो, फाइलों पर नहीं किए दस्तखत

करीब 23 साल पहले भी एक ऐसा ही वाकया हुआ था जब कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री को पद छोड़ना पड़ा. फिर पार्टी से जुड़े कई बड़े नेताओं को पीछे छोड़ते हुए एक 'वफादार' 'और भरोसेमंद' नेता को सीएम पद के लिए चुना गया. वह भी पहली बार विधायक बने थे.

 

आतिशी ने आज सोमवार को दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया. उन्होंने 2 दिन पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि सीएम पद का कार्यभार संभालने के बावजूद वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठीं. वह सफेद रंग की अपनी एक कुर्सी लेकर सचिवालय पहुंचीं और उसी कुर्सी पर बैठीं. उनके बगल में लाल रंग की खाली कुर्सी रखी हुई है, जिस पर मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल बैठा करते थे. हालांकि लोकतंत्र के इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि जब शपथ लेने के बाद भी मुख्यमंत्री ने सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठने का फैसला लिया.

सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठने वाली मुख्यमंत्री आतिशी ने इस संबंध में कहा, “यह कुर्सी अरविंद केजरीवाल की है, और मुझे पूरा भरोसा है कि फरवरी में होने वाले चुनाव में दिल्ली की जनता केजरीवाल को जीताकर फिर से मुख्यमंत्री बनाएगी. तब तक ये कुर्सी यहीं पर रहेगी. सीएम की कुर्सी केजरीवाल की है.”

23 साल पहले भी हुआ ऐसा वाकया

आम आदमी पार्टी (AAP) की नेता आतिशी के इस कदम का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने विरोध करते हुए कहा कि आतिशी दिल्ली सरकार की मनमोहन सिंह हैं जबकि यहां की असली सीएम अरविंद केजरीवाल ही हैं. ये बाबा साहब के बनाए संविधान का मखौल है.

खैर, सीएम होने के बावजूद मुख्यमंत्री की खाली कुर्सी को लेकर आने वाले दौर में लगातार सियासत होगी. लेकिन हिंदुस्तान के इतिहास में यह कोई पहला वाकया नहीं है. इससे पहले करीब 23 साल पहले भी ऐसी ही एक घटना घट चुकी है. यह मामला भी सितंबर में ही सामने आया था. और तब मुख्यमंत्री बनने वाले नेता आतिशी की तरह ही पहली बार विधायक चुने गए थे.

तब पहली बार के विधायक को बना दिया CM

यहां बात हो रही है तमिलनाडु के सियासत की. यह वह दौर था जब जयललिता का खासा दबदबा था. लेकिन जयललिता को 18 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दोषी ठहराए जाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. मई 2001 में तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनाव में AIADMK बड़ी जीत के साथ 5 साल के इंतजार के बाद सत्ता में लौटी. वह दूसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन सत्ता पर काबिज हुए कुछ ही महीने हुए थे कि उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ गया. जयललिता को तब तांसी जमीन घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद सितंबर में मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था.

तब राज्य को नए मुख्यमंत्री की तलाश थी. AIADMK पार्टी की प्रमुख जयललिता ने पार्टी के कई दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए पहली बार विधायक बने ओ पनीरसेल्वम को अपना उत्तराधिकारी चुनकर सभी को चौंका दिया. जयललिता पनीरसेल्वम को OPS के नाम से बुलाती थीं. पनीरसेल्वम की राजनीति में एंट्री बहुत देरी से हुई थी. वह थेनी जिले के बोदीनयाकनूर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. हालांकि 2001 में पहली बार विधायक चुने जाने के बावजूद पनीरसेल्वम को राजस्व मंत्री बनाया गया था.

CM पद की शपथ से पहले छुए थे पैर

कभी चाय की दुकान चलाने वाले पन्नीरसेल्वम बेहद साधारण परिवार से नाता रखते हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर का आगाज पेरियाकुलम नगरपालिका से की थी. फिर वह 1996 से लेकर 2001 के बीच नगरपालिका के अध्यक्ष भी बने. 2001 में उन्होंने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

कोर्ट के आदेश की वजह से जयललिता के कुर्सी छोड़ने के बाद भरोसेमंद और वफादार पनीरसेल्वम ने 21 सितंबर 2001 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि उन्होंने भी आतिशी की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठने का फैसला किया. साथ ही उन्होंने अपने बतौर सीएम कार्यकाल के दौरान कई अहम फाइलों पर हस्ताक्षर भी नहीं किए. यहां तक की वह सीएम पद की शपथ लेने के लिए जाने से पहले उन्होंने जयललिता का पैर भी छुआ था. यही नहीं वह जयललिता की फोटो अपने जेब में रखा करते थे.

जयललिता की जगह करुणा की सीट

सीएम पद की शपथ लेने के बाद जब अगले दिन (22 सितंबर) पन्नीरसेल्वम ने कार्यभार संभाला तब उन्होंने भी यही कहा था, “यह अम्मा की सरकार है” और वह सिर्फ अस्थायी व्यवस्था के तौर पर मुख्यमंत्री बने हैं. जयललिता जैसे ही कोर्ट में अपनी लड़ाई जीत लेंगी, वह फिर से सीएम बन जाएंगी. ‘उन्हें जल्द ही सभी आरोपों से बरी कर दिया जाएगा और वह फिर से वापस आएंगी.” चेन्नई में फोर्ट सेंट जॉर्ज स्थित ऑफिस में पनीरसेल्वम जयललिता की बड़ी कुर्सी पर नहीं बैठे. इसकी जगह वह एम करुणानिधि की उस कुर्सी पर बैठे जिस पर वह मुख्यमंत्री रहने के दौरान बैठते थे.

करीब 6 महीने बाद मार्च 2002 में जयललिता जब मामले में बरी हो गईं तो पनीरसेल्वम ने खुशी-खुशी पद छोड़ दिया. जयललिता के प्रति अपनी वफादारी दिखाते हुए तब वह सीएम के लिए बने स्पेशल रूप में नहीं गए और उन्होंने अपने पुराने ऑफिस से ही काम किया था. वह अपने पहले कार्यकाल में महज 162 दिन ही मुख्यमंत्री रहे थे. हालांकि उनके कार्यकाल को अच्छा करार नहीं दिया गया और उन्हें ‘रबर स्टैंप सीएम’ तक कहा गया.

रोते हुए ली थी CM पद की शपथ

करीब 13 साल बाद फिर एक ऐसा ही वाकया आया जब जयललिता को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया तो उन्होंने सीएम का पद छोड़ दिया. उनके इस्तीफा देने के बाद जयललिता के वफादार पनीरसेल्वम को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया. दूसरी बार जब पनीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उनकी आंखें नम थीं. एक बार वह इतने भावुक हो गए कि उन्हें अपने आंसू पोछने के लिए रूमाल तक का सहारा लेना पड़ा था. वह इस बार भी एक साल से कम समय के लिए मुख्यमंत्री रहे. जयललिता फिर से लौटीं और अपना कार्यकाल पूरा किया.

दूसरी बार उनके शपथ ग्रहण के दौरान न मीडिया को बुलाया गया था और न ही विपक्षी दलों के नेताओं को. ऐसा बताया जाता है कि शपथ ग्रहण के दौरान पनीरसेल्वम लगातार भावुक हो रहे थे और उन्हें देखकर कई अन्य विधायक भी भावुक हो गए थे.

तीसरी बार शपथ से पहले मौन

पनीरसेल्वम तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री तब बने जब जयललिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. जयललिता का 5 दिसंबर 2016 को निधन हो गया. उनके जाने के बाद AIADMK ने एक बार फिर जयललिता के बेहद भरोसेमंद पनीरसेल्वम पर भरोसा किया और उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला.

उन्होंने तीसरी बार शपथ लेने के दौरान जयललिता की फोटो जेब में रखकर ली. यही नहीं शपथ ग्रहण से पहले जयललिता की याद में 2 मिनट का मौन रखा गया था.