वो शख्सियत जिनके सम्मान में PM मोदी भी झुक गए… जानें कौन हैं पद्मश्री पाने वाले डॉ. केएस राजन्ना

दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में गुरुवार को आयोजित नागरिक अलंकरण समारोह में पोलियो से दोनों हाथ-पैर खोने वाले दिव्यांग समाजसेवी डॉ. केएस राजन्ना को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. साल 2002 के पैरालिंपिक में वह भारत के लिए डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक और तैराकी में सिल्वर पदक जीत चुके हैं.

 

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को समय-समय पर कोई न कोई चरितार्थ करता ही रहता है. इन्हीं में से एक हैं दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. केएस राजन्ना. पोलियो के कारण बचपन में ही हाथ-पैर गंवा चुके डॉ. केएस राजन्ना अपने प्रयासों से बड़ी संख्या में दिव्यांगों को रोजगार दिला चुके हैं तो खुद राज्य स्तरीय सिविल सेवा परीक्षा पास कर अच्छे ओहदे तक भी पहुंचे. खेलों में भी नाम रोशन किया. अब देश ने पद्मश्री देकर उन्हें सम्मानित किया है. आइए जानते हैं इस बड़े हौसले वाले सामाजिक कार्यकर्ता की कहानी.

दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में गुरुवार को नागरिक अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया. इसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के नागरिकों को प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कारों से नवाजा. सामाजिक कार्य, शिक्षा, पत्रकारिता, साहित्य और सार्वजनिक मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण योगदान के लिए 2 लोगों को पद्म विभूषण, 9 को पद्म भूषण और 56 लोगों को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. पद्मश्री पुरस्कार पाने वालों में पोलियो से दोनों हाथ-पैर खोने वाले दिव्यांग समाजसेवी 64 वर्षीय डॉ. केएस राजन्ना भी शामिल थे.

11 साल की उम्र में गंवा दिए थे हाथ-पैर

डॉ. केएस राजन्ना अपना पुरस्कार लेने चलकर आए तो हर कोई उन्हें देखता ही रह गया. सबसे पहले डॉ. राजन्ना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाया. इसके बाद राष्ट्रपति से सम्मान ग्रहण किया. इस दौरान डॉ. केएस राजन्ना की मदद के लिए एक जवान आगे बढ़ा तो उसे मना कर दिया. ऐसे बुलंद हौसले वाले बेंगलुरु निवासी डॉ. केएस राजन्ना कर्नाटक के मांड्या जिले के मूल निवासी हैं. अपने माता-पिता की सातवीं संतान डॉ. राजन्ना ने 11 साल की उम्र में ही हाथ-पैर गंवा दिए थे. फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और घुटनों के बल चलना सीखा.

उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के साथ ही लेखन, हस्तशिल्प के अलावा डिस्कस थ्रो, ड्राइविंग और स्विमिंग भी सीखी. 1975 में कर्नाटक की सिविल सेवा परीक्षा पास कर अफसर बन गए. फिर भी पढ़ाई नहीं छोड़ी और साल 1980 में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया.

व्यवसाय शुरू कर लोगों को रोजगार दिया

ये सब करते हुए उन्होंने दूसरे दिव्यांग लोगों को सक्षम बनाने के लिए काम करने का फैसला किया. अपने खुद के प्रयासों से वह अब तक सैकड़ों दिव्यांगों को रोजगार प्रदान कर चुके हैं. इसके लिए उन्होंने स्वयं का व्यवसाय शुरू किया. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक दिव्यांगों सहित 500 से अधिक लोगों को वह जनवरी 2024 तक रोजगार से जोड़ चुके हैं.

सरकार ने दिव्यांग कमिश्नर पद से हटाया तो खूब हुआ था विरोध

समाजसेवा के लिए लगातार काम करने पर राज्य सरकार ने 2013 में उनको दिव्यांगों के लिए राज्य कमिश्नर बना दिया. उनको तीन साल के लिए यह पद दिया गया था, पर कार्यकाल खत्म होने से पहले ही पद से हटा दिया गया. इस पर कर्नाटक सरकार के फैसले का जमकर विरोध शुरू हो गया था. सबसे अहम बात तो यह थी कि 54 साल के डॉ. राजन्ना को जानकारी भी नहीं दी गई थी कि उनको पद से हटाया गया है. हालांकि, विरोध के बाद सरकार ने दोबारा उनको इसी पद पर नियुक्ति दे दी.

कर्नाटक के पहले दिव्यांग आयुक्त बनाए गए डॉ. राजन्ना ने अपने कार्यकाल के दौरान विकलांगता जनगणना की भी मांग की थी. उनका कहना था कि विकलांग व्यक्ति अधिनियम को उचित ढंग से क्रियान्वित करने के लिए दिव्यांगों की गणना जरूरी है. उनका कहना था कि इस जनगणना में न सिर्फ दिव्यांगों की संख्या गिनी जाएगी, बल्कि उनकी दिव्यांगता की सीमा, शिक्षा का स्तर, रोजगार और आय को भी दर्ज किया जाएगा.

पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक भी जीत चुके हैं डॉ. राजन्ना

डॉ. राजन्ना एक अच्छे खिलाड़ी भी हैं. साल 2002 के पैरालिंपिक में वह डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक और तैराकी में सिल्वर पदक जीत चुके हैं. डॉ. राजन्ना चाहते हैं कि राजनीति में भी दिव्यांगों को आरक्षण मिलना चाहिए. पद्मश्री मिलने के बाद उन्होंने यह उम्मीद जताई है कि यह पुरस्कार राज्य और केंद्र सरकार को किसी दिव्यांग व्यक्ति को विधान परिषद या राज्यसभा सदस्य नियुक्त करने के लिए प्रेरित करेगा.