17 साल बनाया प्लान, तब जाकर खड़ा हुआ चिनाब ब्रिज… कौन हैं सिविल इंजीनियर जी. माधव लता?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल चिनाब ब्रिज का उद्घाटन किया. यह पुल अब ट्रेन यातायात के लिए खोल दिया गया है और भारतीय इंजीनियरिंग की एक ऐतिहासिक उपलब्धि बन गया है. इसके लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु की एक प्रोफेसर ने भी अहम भूमिका निभाई है.
दुनिया के सबसे ऊंचे चिनाब रेलवे ब्रिज का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को उद्घाटन किया. कई सालों से चल रहा यह काम आखिरकार पूरा हो गया है और दुनिया के इस सबसे ऊंचे ब्रिज को ट्रेन यातायात के लिए खोल दिया गया है. इसके निर्माण में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के एक प्रोफेसर की भी भूमिका रही है. IISc सिविल इंजीनियरिंग विभाग की रॉक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ जी. माधवी लता ने करीब 17 साल तक चिनाब ब्रिज के निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
माधवी लता ने चिनाब पुल के ठेकेदार अफकॉन्स के अनुरोध पर निर्माण कार्य का मार्गदर्शन किया है. ‘डेक्कन हेराल्ड’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माधवी लता ने पुल के ढलान को स्थिर करने और नींव रखने का मार्गदर्शन किया है. 1,486 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह पुल एक सदी से भी अधिक समय तक सबसे कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों को झेलने में सक्षम बताया गया है. नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर, कटरा और काजीगुंड के बीच दो पहाड़ियों को जोड़ने वाला चिनाब रेल पुल, दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज है, जो एफिल टॉवर से भी ऊंचा है.
2005 में हुई पुल परियोजना की शुरुआत
पुल परियोजना 2005 में शुरू हुई थी. माधवी लता के हवाले से डेक्कन हेराल्ड ने बताया 2022 में फुल-स्पीड ट्रेनों के सफल ट्रायल रन के साथ काम पूरा हो गया. 1,315 मीटर लंबा यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलवे कनेक्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसने भारतीय इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी स्थापित किया है. रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया है कि स्थिरता को लेकर चिंताएं थीं क्योंकि पुल के आधार पर चट्टानों के बीच अंतराल बहुत बड़ा था.
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील
साथ ही ढलान बहुत खड़ी थी. इस प्रकार, प्राथमिक चुनौतियों में से एक ढलानों पर मेहराब समर्थन और स्तंभों के लिए नींव का निर्माण था. पुल की नींव को 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं को झेलने के लिए बड़ा और गहरा बनाया गया था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिस इलाके में पुल बना है, वह भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है, जो इंजीनियरों के लिए बड़ी चुनौती है.
लता ने प्रोजेक्ट एडवाइजर के तौर पर संभाली कमान
हमने इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन में संशोधन किए हैं. उदाहरण के लिए, नींव को मूल योजनाओं में जहां होना चाहिए था, वहां से थोड़ा स्थानांतरित कर दिया गया है. ऐसे मामलों में, हम कठोर डिजाइन नहीं कर सकते. शुरुआती सालों में लता के पास प्रोजेक्ट एडवाइजर के तौर पर आईआईएससी के एक और वैज्ञानिक भी थे. लेकिन कुछ सालों बाद उन्होंने प्रोजेक्ट छोड़ दिया. बाद में लता ने 2022 में पुल बनकर तैयार होने तक खुद ही काम संभाली.