महाराष्ट्र और हरियाणा में हार के बाद दिल्ली से कितनी दूर हो गई है कांग्रेस?

हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद अब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं. दोनों ही राज्यों में करारी हार के बाद सवाल उठ रहा है कि दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस कितनी दूर हो गई है? आइए 5 प्वॉइंट्स के जरिए इसे समझते हैं...

 

हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की करारी हार का साइड इफैक्ट क्या दिल्ली में दिखेगा? 2 वजहों से यह सवाल चर्चा में है. पहली वजह दिल्ली में कांग्रेस का लगातार घटता जनाधार और दूसरी वजह कांग्रेस की तैयारी है. एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी में चुनावी बिगुल फूंक दिया है, वहीं कांग्रेस अब तक सिर्फ संगठन के ही कील-कांटे को दुरुस्त कर रही है.

हरियाणा-महाराष्ट्र की हार से सकते में कांग्रेस

2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के उत्थान की बात कही जा रही थी, लेकिन जिस तरीके से पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है, उससे पार्टी सकते में है.

हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को बढ़त मिलने की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी दोनों ही राज्यों में बुरी तरह हार गई. महाराष्ट्र में तो उसके पास नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी नहीं बची.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. हरियाणा में भी उसे 50 प्रतिशत सीटों पर जीत मिली थी.

दिल्ली में बढ़ सकती है टेंशन, 5 वजहें

1. दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच मुख्य लड़ाई है. कांग्रेस के लगातार हारने को आप मुद्दा बनाने की तैयारी में है. आप दिल्ली की जनता को यह बताने की कवायद में जुटी है कि सिर्फ अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली में बीजेपी को हरा सकते हैं. आप का यह दांव अगर हिट होता है तो दिल्ली का चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले में तब्दील नहीं हो पाएगा. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होगा.

2. कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में बिना चेहरा घोषित किए मैदान में उतरी थी. दोनों जगहों पर कांग्रेस को नुकसान हुआ. दिल्ली में भी कांग्रेस बिना फेस लड़ने की तैयारी में है. दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल सीएम फेस हैं तो बीजेपी मोदी के चेहरे पर मैदान में उतरने की तैयारी में है. बीजेपी लोकल लेवल पर मजबूत नेताओं को मैदान में उतारेगी.

3. अब तक का जो सिनेरियो देखा गया है, उसके मुताबिक बीजेपी को हराने वाली पार्टी को मुसलमानों का एकतरफा वोट मिलता रहा है. बिहार में आरजेडी, यूपी में सपा और बंगाल में तृणमूल इसका उदाहरण है. दिल्ली में अगर यह माहौल बनता है कि बीजेपी को सिर्फ आप हरा सकती है तो मुस्लिम वोटर्स अरविंद केजरीवाल की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं. दिल्ली में मुसलमानों की आबादी 12 प्रतिशत के करीब है.

4. दिल्ली में कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल मची हुई है. पिछले एक महीने में वीर सिंह धींगान, सुमेश शौकीन और चौधरी मतीन अहमद जैसे कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. कहा जा रहा है कि आने वाले वक्त में कांग्रेस के कई और नेता पार्टी छोड़ सकते हैं.

5. दिल्ली की सियासत में कांग्रेस पार्टी एक वक्त में अजेय थी, लेकिन 2013 के बाद उसका लगातार जनाधार घटता गया. 2020 के चुनाव में आप को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. उसके वोट प्रतिशत में भी कमी आई थी. 2015 में आप को करीब 9.70 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2020 में घटकर 4.26 रह गए.

कांग्रेस के लिए इसलिए भी राह मुश्किल

2013 के बाद से कांग्रेस के पास दिल्ली में कोई चेहरा नहीं है. पहले शीला दीक्षित दिल्ली कांग्रेस के भीतर चेहरा थीं, लेकिन उनका निधन हो चुका है. जय प्रकाश अग्रवाल और सुभाष चौपड़ा पार्टी के कद्दावर नेता हुआ करते थे, लेकिन दोनों अब उम्रदराज हो गए हैं.

पार्टी की कमान वर्तमान में देवेंद्र यादव के पास है, लेकिन पूरी दिल्ली में उनकी भी मजबूत अपील नहीं है. कांग्रेस की राह मुश्किल होने की यह भी एक वजह है.

आप ने कैंडिडेट घोषित किए, बीजेपी की टीम गठित

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. आप की तरफ से घोषित 11 उम्मीदवारों में 6 दूसरी पार्टी से आए नेता हैं. आप ने उन सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, जहां पार्टी की स्थिति कमजोर है.

दूसरी तरफ दिल्ली चुनाव में नैरेटिव सेट करने और कैंपेन करने को लेकर बीजेपी ने एक बड़ी टीम बनाई है. यही टीम पूरे चुनाव का मैनेजमेंट देखेगी. 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है.