यूपी में ‘सरकार से बड़ा संगठन’, नजूल संपत्ति विधेयक ने विधान परिषद में क्या साबित कर दिया?

उत्तर प्रदेश में नजूल बिल के लटकने पर राजनीति तेज हो गई है. बीजेपी के अंदर ही बिल का विरोध देखने को मिल रहा है. प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की आपत्ति के बाद योगी सरकार ने इसे लटका दिया. यह पहला मौका है जब यूपी में बीजेपी सरकार में विधानसभा से पास होने के बाद कोई बिल लटका हो. सवाल अहम है अगर इस विधेयक को प्रवर समिति ही भेजना था तो इसे विधानसभा से पास ही क्यों करवाया गया?

 

लोकसभा चुनाव नतीज के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के ‘सरकार से बड़ा संगठन’ बताने वाले बयान को सीएम योगी के साथ उनकी सियासी अदावत को जोड़ दिया गया था. केशव मौर्य अपनी इस बात पर पूरी तरह से कायम हैं और सोशल मीडिया के जरिए लगातार इसी मुद्दे को उठा रहे हैं, जिसके बाद यूपी बीजेपी में अंतर्विरोध की चर्चा जोर पकड़ी. ऐसे में ‘सरकार से बड़ा संगठन’ वाला बयान तब सच साबित होता दिखा, जब नजूल भूमि विधेयक विधानसभा से पास होने के बाद विधान परिषद से जाकर अधर में लटक गया.

नजूल भूमि के बिल को बीजेपी विधायकों के विरोध के परवाह न करते हुए योगी सरकार ने बुधवार को विधानसभा से पास करा लिया, लेकिन विधान परिषद में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विरोध करके बिल को प्रवर समिति को भेजने के लिए मजबूर कर दिया. इसके बाद नजूल भूमि विधान परिषद में जाकर लटक गया है. ऐसे में सवाल उठने लगा कि कि नजूल संपत्ति विधेयक ने क्या साबित कर दिया है, ‘सरकार से बड़ा संगठन’ है.

लोकसभा चुनाव के नतीजे से सबक!

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में तगड़ा झटका लगा है. बीजेपी सूबे की 62 सीटों से घटकर 33 सीट पर आ गई है. इस तरह यूपी में बीजेपी की जितनी सीटें कम हुई हैं, उतनी ही सीटों से बहुमत से दूर रह गई है. यूपी में मिली हार के बाद से बीजेपी में सियासी संग्राम छिड़ा है. इसी बीच केशव प्रसाद मौर्य ने लखनऊ में पार्टी कार्यसमिति की बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सीएम योगी की मौजूदगी में कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन है. इसके बाद से केशव मौर्य फ्रंटफुट पर दिखाई दे रहे हैं और अपने बयान पर अडिग हैं. इस कड़ी में उन्होंने फिर कहा कि कहा कि संगठन सदा बड़ा रहेगा. केशव के साथ सुर में सुर मिलाते हुए बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी नजर आ रहे हैं.

योगी सरकार यूपी की नजूल की जमीन को विकास योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराने की मंशा से यूपी नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024 लेकर आई थी. सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट की बैठक से नजूल भूमि विधेयक बिल को मंजूरी दी. इसके बाद विधायक को विधानसभा में योगी सरकार के संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने पेश करते हुए कहा कि यह विधेयक आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत देने के लिए लाया गया है. साथ ही कहा कि सार्वजनिक महत्व की विभिन्न प्रकार की विकास गतिविधियों के कारण भूमि की निरंतर और तत्काल जरूरत है, जिसे संबंधित हितधारकों को विकास गतिविधियों में उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जा सके.

विपक्ष के साथ भाजपा विधायकों ने भी किया विरोध

विधानसभा में बिल पेश होते ही सपा विधायकों के साथ बीजेपी के विधायकों ने भी विरोध शुरू कर दिया. बीजेपी विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन बाजपाई के साथ ही कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह और कांग्रेस विधायक आरधना मिश्रा ने विरोध जताया था. इस विधेयक को लेकर सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन वाजपेयी ने आपत्ति दर्ज करवाई थी. विधेयक में नजूल की भूमि की लीज रिन्यू करने के बारे स्पष्ट न होने सवाल सिद्धार्थनाथ सिंह उठाया था. योगी सरकार ने विपक्ष के साथ बीजेपी के विधायकों का विरोध नजर अंदाज करते हुए बिल को पास करा लिया.

नजूल भूमि विधेयक विधानसभा से पास होने के बाद गुरुवार को विधान परिषद में पेश किया गया था. केशव प्रसाद मौर्य ने जैसे ही विधान परिषद सदन में बिल टेबल करने का प्रस्ताव कर ही रहे थे, तभी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और एमएलसी भूपेंद्र चौधरी खड़े हुए और विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की बात कहने लगे. ऐसे में सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भूपेंद्र चौधरी को रोका और कहा कि पहले विधेयक टेबल तो हो जाने दीजिए. इसके बाद भूपेंद्र चौधरी बैठ गए और जैसे ही केशव प्रसाद मौर्य ने विधेयक पेश किए, उसके बाद फिर से भूपेंद्र चौधरी फिर खड़े हुए और विधेयक प्रवर समिति में भेजने की कहा कही. उन्होंने कहा कि प्रवर समिति दो महीने में रिपोर्ट देगी और समिति के सदस्यों के नाम बाद में तय कर दिए जाएंगे.

नजूल बिल की सियासी कहानी

विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने बीजेपी एमएलसी भूपेंद्र चौधी के अनुरोध और प्रस्ताव को मंजूर करते हुए बिल को प्रवर समिति को भेज दिया. इसके चलते अब माना जा रहा है कि नजूल भूमि विधेयक अधर में लटक गया है. विधानसभा से पास होने के बाद विधान परिषद में ऐसे ही बिल की राह में भूपेंद्र चौधरी रोड़ा नहीं बने हैं बल्कि उसके पीछे सियासी कहानी है. बुधवार को विधानसभा से बिल पास होने के बाद नाराजगी जताने वाले बीजेपी विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और केशव मौर्य से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी.

बीजेपी विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष और केशव मौर्य से बिल पास होने की सूरत में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में होने वाले भारी नुकसान की आशंका भी जताई. खास बात यह कि विधानसभा में में बिल का विरोध करने वाले दोनों बीजेपी विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह और हर्ष बाजपेई प्रयागराज क्षेत्र से आते हैं. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी प्रयागराज से आते हैं. इसके बाद ही तय हुआ था कि विधान परिषद के सभी सदस्यों की आम सहमति से इस बिल को पास होने से रोका जाए. इसके बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विधान परिषद में खड़े होकर इस बिल पर आपत्ति जताई और इसे प्रवर समिति को सौंपने को कहा. इसके बाद यह बिल फंस गया और इस प्रवर समिति को सौंपने का फैसला लिया गया.

विधानसभा में बिल पास ही क्यों करवाया?

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के विरोध जताने के बाद योगी सरकार के नजूल बिल के लटकने से सियासी चर्चाएं तेज हो गई हैं. यूपी में बीजेपी सरकार आने के बाद यह पहला मौका है, जब विधानसभा से पास होने के बाद कोई बिल को उस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने विधेयक का विरोध करते हुए विधान परिषद में लटकवा दिया हो. ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर इस विधेयक को प्रवर समिति ही भेजना था तो सरकार इसे विधान सभा से पास ही क्यों करवाया गया? ऐसे में कहा जा रहा है कि सरकार से बड़ा संगठन की बात विधान परिषद में सही साबित हुई.