खून पसीने की कमाई से बनाया, अब अपने ही घरों पर क्यों बुलडोजर चला रहे लोग?

बलिया में सरयू नदी का जल स्तर बढ़ने से बाढ़ जैसे हालात हैं. यहां कई आशियाने सरयू नदी में समा गए हैं. कहीं और ज्यादा घर न इसकी चपेट में आ जाएं, इसलिए लोग अपने-अपने मकानों को खुद ही तोड़ रहे हैं. इसके लिए वो बुलडोजर की भी मदद ले रहे हैं. उससे ईंट और बाकी सामान निकालकर कहीं दूसरी जगह ले जा रहे हैं. ताकि वहां जाकर वो नया आशियाना बना सकें.

 

उत्तर प्रदेश के 17 जिले इस समय बाढ़ की चपेट में हैं. कुछ जिलों में बाढ़ की स्थिति गंभीर है तो कुछ जिलों में बाढ़ का पानी उतरने लगा है. राप्ती, शारदा, गंडक, घाघरा, सरयू, रामगंगा और गंगा नदी उफान पर हैं. बलिया में तो हालात ऐसे हो गए हैं कि सरयू नदी लोगों के आशियानों को खुद में समेटे जा रही है. इसलिए लोग अब अपने ही घरों को तोड़ने पर मजबूर हो गए हैं. यहां लोग खुद के घरों पर बुलडोजर चला रहे हैं.

खुद ही मकानों को तोड़ ईंट और अन्य सामान दूसरी जगह ले जा रहे हैं. ईंटों को लोग इसलिए साथ में ले जा रहे हैं ताकि वो दूसरी जगह मकान बनाने के काम आ जाएं. यह मंजर बांसडीह तहसील के अंतर्गत टिकुलिया और भोजपुरवा गांव में देखने को मिल रहा है. यहां के लोगों की स्थिति सरयू नदी के कारण दयनीय बन चुकी है. कई घर पानी में समा गए हैं. कहीं बाकी घर भी इसी तरह न पानी में बह जाएं, लोग अपने-अपने घरों को तोड़ने में लग गए हैं.

बलिया जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने बताया कि जो भी परिवार यहां से जा रहे हैं, उनके ठहरने की व्यवस्था की जा रही है. जो भी इनका नुकसान हुआ है उसकी जांच कर रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी. ताकि नुकसान का मुआवजा मिल सके. उन्होंने बताया कि लेखपाल ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें 13 मकान अभी तक तोड़े जा चुके हैं.

प्रशासन पर साधा निशाना

भोजपुरवा और टिकुलिया के रहने वाले तमाम ग्राम वासियों ने बताया कि प्रशासन यूं तो बाढ़ के कटान को लेकर कई दावे करती है. लेकिन समय आने पर प्रशासन के सभी दावे फेल हो जाते हैं. वर्तमान में हम लोग सरयू नदी में विलीन हो रहे हैं. कई लोगों का आशियाना बह गया है. अब हम लोग अपना सामान रिश्तेदार और पड़ोसियों के यहां रख रहे हैं. खुद अपने हाथों से घर को तोड़ रहे हैं. ताकि ईंट पत्थर काम में आ जाए. प्रशासन के लोग आ रहे हैं, आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन कोई राहत अभी तक हमें नहीं मिली है. जिला प्रशासन हवा हवाई आश्वासन दे रहा है.

क्या बोले गांव वाले?

भोजपुरवा गांव की पीड़ित महिला का कहना है कि जिस घर को हमने खून पसीने की कमाई से बनाया, अब उसे ही बुलडोजर से तोड़ना पड़ रहा है. हमारी कोई सुनवाई नहीं कर रहा. घर तोड़ने में भी हमें खर्चा पड़ रहा है. न जाने कितने हजारों रुपये अब तक लग चुके हैं. समझ नहीं आ रहा कि अधिकारी इस मामले में क्या कर रहे हैं?

विश्राम यादव ने कहा- हम क्या करें. पानी घरों तक पहुंच रहा है. मैं अधिकारियों को बोलना चाहता हूं कि एक बार वो यहां आकर आधे घंटे के लिए बैठें, तब उन्हें अंदाजा होगा कि हम कितने कष्ट में हैं. अपने बच्चों की चिंता है, इसलिए घर तोड़ने पर मजबूर हैं. अगर हम घर नहीं तोड़ते हैं तो यह बाढ़ के पानी में बह जाएंगे. फिर बताइये हम कहां जाएंगे?