यूपी का अनोखा गांव… जहां लहसुन-प्याज, सिगरेट, तंबाकू नहीं खाते लोग, गिनीज बुक में दर्ज है नाम

बाबा फकीरदास के मंदिर से उनकी मूर्ति एक ढलाई व्यापारी के पास पहुंच गई. व्यापारी मूर्ति की रोज पूजा करने लगा, लेकिन उसे रोज एक सपना आता था कि मंदिर में उसे छोड़ आएं. व्यापारी की कुछ समय बाद मौत हो गई, उसके परिवारवालों ने मंदिर का पता लगाया और मूर्ति वहीं रख दी. देबंद के इस गांव के लोग लहसुन-प्याज और नशे नहीं करते हैं, इसलिए इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है.

 

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में एक ऐसा मंदिर है, जिसकी मूर्ति ले जाने वाला व्यापारी हर दिन सपने दिखाई देते थे. सपने देखकर व्यापारी परेशान हो गया था. बीस साल पहले ढलाई में आई एक मूर्ति ने बीस साल तक व्यापारी को हर दिन सोने नहीं दिया. ढलाई व्यापारी के रोजाना सपने में आकर मूर्ति वाले बाबा कहते थे कि मुझे मेरे स्थान पर छोड़कर आओ. सपने में बाबा को देखकर व्यापारी परेशान हो चुका था.

अंत में व्यापारी के परिवार ने मंदिर का पता लगाया और उसे चुपचाप मंदिर में छोड़ आए.गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में यूपी के इस गांव का नाम दर्ज इसलिए है क्योंकि यहां के लोग न तो शराब पीते न ही सिगरेट, तंबाकू… बल्कि लहसुन, प्याज तक का इस्तेमाल भी नहीं करते हैं. क्योंकि यहां पर सैकड़ों साल पहले आए बाबा फकीरदास आए थे.

बाबा फकीरदास का मंदिर

देवबंद में मिरगपुर के नाम से ये गांव है. इसी गांव में बाबा फकीरादास का भव्य मंदिर भी है. बाबा फकीरादास जी की एक बेशकीमती मूर्ति कई साल पहले मुजफ्फरनगर के एक ढलाई कारोबारी के पास पहुंची थी. व्यापारी ने बाबा की मूर्ति को अपने घर में रखा और उनकी पूजा करने लगा.

कुछ दिनों बाद रात को अक्सर व्यापारी को सपने में बाबा फकीरदास आने लगे और कहने लगे कि मेरी इस मूर्ति को मेरे मंदिर में वापस छोड़कर आओ. व्यापारी और उनके परिवार के सदस्य मंदिर को ढूंढने लगे. इसी बीच व्यापारी की मौत हो गई. मृतक व्यापारी के भाई संदीप रस्तोगी और दूसरे भाई लगातार मंदिर को खोजते रहे. इसी बीच उन्हें अपने एक रिश्तेदार की मदद से बाबा फकीरादास के मंदिर के बारे में पता चला. इसके बाद संदीप और उनके भाई बाबा की मूर्ति को चुपचाप मंदिर में रख आए.

गांव के लोगों ने जब बाबा की मूर्ति देखी तो वो भी अचरज में पड़ गए कि आखिर ये मूर्ति आई कहा से है? जानकारी मिलने पर व्यापारी के बारे में पता चला तोव्यापारी के दोनों भाईयो को गांव वालो ने मंदिर पर बुलाकर उनका स्वागत किया और धन्यवाद दिया. बाबा फकीरदास की ये मूर्ति कितनी पुरानी है और व्यापारी के पास कैसे पास कैसे पहुंची ये अभी भी रहस्य बना हुआ है.