यूपी में हार का ठीकरा किसके सिर फूटा,15 पेज की रिपोर्ट क्या दे रही संकेत?

2024 के चुनाव नतीजे आने के बाद से यूपी बीजेपी में सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. बीजेपी और गठबंधन के सहयोगी नेता लगातार सवाल उठाने लगे हैं और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मुलाकात और बैठकों का दौर जारी है. इसी बीच यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बीजेपी हाईकमान को जो 15 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है, उसमें बीजेपी के खराब प्रदर्शन के कई बड़े कारण बताए गए हैं.

 

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक इस बार नतीजे नहीं आए हैं. देश के जिन राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन 2024 में ठीक नहीं रहा, उनमें सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की हो रही है. यूपी में बीजेपी 62 लोकसभा सीटों से घटकर इस बार सिर्फ 33 सीट पर ही नहीं सिमटी बल्कि उसका वोट शेयर भी 8.50 फीसदी कम हो गया है. यूपी की हार पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने 80 सीटों पर पार्टी के 40 हजार कार्यकर्ताओं से बातचीत और फीडबैक के आधार पर तैयार 15 पेज की रिपोर्ट आलाकमान को सौंप दी है.

2024 के चुनाव नतीजे आने के बाद से यूपी बीजेपी में सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. बीजेपी और गठबंधन के सहयोगी नेता लगातार सवाल उठाने लगे हैं और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मुलाकात और बैठकों का दौर जारी है. इसी बीच बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा इंटरनल रिपोर्ट सौंपे जाने और उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर विस्तृत चर्चा की. रिपोर्ट में यूपी के क्षेत्रवार सीटें हारने से लेकर वोट शेयर घटने ही नहीं बल्कि जिन कारण से पार्टी को हार मिली है, उसका भी जिक्र किया गया है.

बीजेपी हाईकमान को सौंपी गई 15 पन्नों की रिपोर्ट

भूपेंद्र चौधरी की ओर से हाईकमान को सौंपी गई इंटरनल रिपोर्ट में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के कई बड़े कारण बताए गए हैं. इसमें प्रदेश में अधिकारियों और प्रशासन की मनमानी की वजह को हार का कारण बताया गया है. बीजेपी कार्यकर्ताओं का राज्य सरकार से असंतोष को 2024 में मिली हार का बड़ा कारण बताया गया है. इसके अलावा युवाओं में पेपर लीक के मसले को लेकर नाराजगी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 6 साल लगातार सरकारी नौकरियों में पेपर लीक होना बीजेपी के हार की वजह बनी है.

यूपी में बीजेपी की हार की एक वजह राज्य सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में संविदा कर्मियों की भर्ती सामान्य वर्ग के लोगों को तरजीह दिए जाने से हुई है, जिसके चलते विपक्ष को चुनाव के दौरान आरक्षण खत्म करने जैसे नैरेटिव को गढ़ने में मजबूती मिली. विपक्ष पहले से ही संविधान बदलने के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठा रहा था. संविदा कर्मियों की भर्ती में सामान्य वर्ग को प्राथमिकता मिलने से पिछड़े और दलित वोट बैंक को प्रभावित किया. इसके अलावा कहा गया है कि राजपूत समाज की बीजेपी से नाराजगी का असर चुनाव नतीजे पर दिखा. साथ ही संविधान बदलने वाले बयान, ओपीएस और अग्निवीर जैसे मुद्दे चुनाव में बीजेपी को महंगे पड़े हैं.

‘अभी तक किसी भी BJP नेता ने नहीं हार की जिम्मेदारी’

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने टीवी-9 डिजिटल से बात करते हुए कहा कि यूपी में बीजेपी की हार ही उसके लिए शर्मिंदगी से कम नहीं है. अभी तक किसी भी बीजेपी नेता ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली है. अभी तक सार्वजनिक रूप से जिन कारणों को हार की वजह बताया जा रहा, उन्हीं वजहों को रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है. भूपेंद्र चौधरी ने कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट तैयार में हार के जो भी कारण बताए गए हैं, उसमें ज्यादातर इशारा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और प्रशासन की तरफ हैं.

बीजेपी की कार्यसमिति में सीएम योगी ने चुनाव के हार की वजह अति आत्मविश्वास और विपक्ष के नैरेटिव को बताया था जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार से बड़ा संगठन बताकर सियासी संदेश देने की कोशिश की थी. लेकिन, इसी के साथ बीजेपी के नेताओं के बीच मनमुटाव की चर्चा तेज हो गई. सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि बीजेपी की इंटरनल रिपोर्ट ने सूबे में मिली हार का ठीकरा पूरी तरह से योगी सरकार और उनके प्रशासन के सिर मढ़ दिया है. सरकार से चाहे कार्यकर्ताओं की नारजगी की बात हो या फिर प्रशासन के मनमाना रवैया. दोनों ही कारण साफ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी की हार की जिम्मेदारी कौन है?

सरकार-संगठन एक दूसरे पर फोड़ रहे हार ठीकरा

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार काशी प्रसाद यादव कहते हैं कि यूपी में हार की जिम्मेदारी कोई भी अपने ऊपर लेना नहीं चाहते हैं, न ही सरकार अपने ऊपर ले रही है और न ही संगठन अपनी कमी मान रहा है. सीएम योगी आदित्यनाथ भले ही किसी का नाम न लिया हो, लेकिन जिस तरह से उन्होंने कार्यसमिति में बात कही, उससे साफ है कि किसकी तरफ इशारा कर रहे थे. अब जब प्रदेश अध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है, उसमें सरकार और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया है. इस तरह साफ है कि हार की ठीकरा सरकार और संगठन अब एक-दूसरे पर मढ़ने में जुट गए हैं. हालांकि, बीजेपी की हार ने कई तरह से सवाल खड़े किए हैं तो पार्टी नेताओं को मुखर होने का मौका भी मिल गया है.