निर्जला एकादशी के दिन इस विधि से करें पिंडदान, पूर्वजों का मिलेगा आशीर्वाद!
निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, और यह सभी एकादशियों में सबसे कठिन और पुण्यदायी मानी जाती है, क्योंकि इसमें अन्न के साथ-साथ जल का भी त्याग किया जाता है. इस साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा.

हिन्दू धर्म में निर्जला एकादशी के दिन का बहुत अधिक महत्व है. इस दिन पितरों का आशीर्वाद पाने और घर से पितृदोष दूर करने के लिए तर्पण और पिंडदान करना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. यूं तो श्राद्ध कर्म और पिंडदान मुख्य रूप से पितृ पक्ष (जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर में आता है) में किए जाते हैं, लेकिन कुछ विशेष तिथियों पर, खासकर एकादशी पर पितरों के निमित्त किए गए दान और तर्पण का भी बहुत महत्व होता है. निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा होती है, और भगवान विष्णु को पितरों का मुक्तिदाता भी माना जाता है. इसलिए, इस दिन पितरों के निमित्त कुछ कार्य करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा.
निर्जला एकादशी पर पूर्ण विधि-विधान से पिंडदान करना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह व्रत स्वयं निर्जल होता है. हालांकि, आप पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए कुछ सरल उपाय कर सकते हैं. एकादशी के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसी समय अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनसे आशीर्वाद की कामना करें. मन ही मन उनसे प्रार्थना करें कि आपके व्रत और दान से उन्हें शांति मिले.
निर्जला एकादशी पर जल का दान सबसे बड़ा दान माना जाता है. यह दान पितरों को विशेष रूप से तृप्त करता है. घर में जल से भरा एक कलश रखें, उसे सफेद वस्त्र से ढकें, और उस पर चीनी व दक्षिणा रखकर किसी ब्राह्मण को दान दें. सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ लगवाएं या राहगीरों को ठंडा जल पिलाएं. मंदिर में जल से भरी सुराही या घड़े का दान करें. माना जाता है कि इस दान से पितर तृप्त होते हैं, पितृ दोष और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है.
शास्त्रों में कहीं भी स्पष्ट रूप से यह नहीं लिखा है कि एकादशी के दिन चावल का पिंड नहीं बनाना चाहिए. कुछ परंपराओं के अनुसार आप चावल का पिंड बना सकते हैं. थोड़े से पके हुए चावल लें, उसमें तिल, दूध और थोड़ा गंगाजल मिलाएं. इसे अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए पिंड का रूप दें. पद्म पुराण और नारद पुराण में उल्लेख है कि एकादशी के दिन पिंड बनाकर उसे सूंघकर गाय को खिला देना चाहिए. यह पितरों को तृप्त करने का एक तरीका है. यदि आप नियमित श्राद्ध कर्म नहीं कर पा रहे हैं, तो यह एक सांकेतिक पिंडदान पितरों के प्रति आपकी श्रद्धा को दर्शाता है.
तिल को पितृ दोष निवारण के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. जल में तिल डालकर पितरों के निमित्त तर्पण (जल अर्पित) करें. इसके बाद किसी योग्य व्यक्ति को तिल का दान करें. इससे पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर या तुलसी के पास (लेकिन एकादशी को तुलसी पत्र न तोड़ें) या पीपल के पेड़ के पास दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक (तिल के तेल का) जलाएं. यह पितरों को मार्ग दिखाता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है.
ब्राह्मणों को भोजन और दान: निर्जला एकादशी का व्रत अगले दिन (द्वादशी तिथि को) पारण के समय खोला जाता है. पारण से पहले, भूखे और सत्पात्र ब्राह्मणों को भोजन कराएं (यदि संभव हो तो) और उन्हें वस्त्र व दक्षिणा दान करें. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. सर्वोत्तम परिणाम के लिए, किसी अनुभवी ज्योतिषी या पंडित से सलाह लेना हमेशा उचित रहता है, खासकर यदि आपके परिवार में श्राद्ध या पिंडदान की कोई विशिष्ट परंपरा हो. इन उपायों को करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि तथा आशीर्वाद प्रदान करते हैं.