गोवा के लैराई देवी मंदिर में किसकी होती है पूजा, क्या है जात्रा का महत्व?
शुक्रवार देर रात गोवा के लैराई देवी मंदिर में आयोजित जात्रा (धार्मिक जुलूस) में हुई भगदड़ के दौरान 6 लोगों की मौत हो गई और लगभग 50 से ज्यादा लोग घायल हैं.तो आइए जानते हैं कौन सा है ये मंदिर और क्या है जात्रा?

भारत को मंदिरो का देश के नाम से जाना जाता है. यह बहुत से प्राचीन मंदिर है. जिसमे कुछ ऐसे देवी-देवता है जिनके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है और इनकी पूजा भी कुछ ही जगहों पर की जाती है. ऐसा ही एक मंदिर है जहां लैराई देवी की पूजा की जाती है. लैराई मंदिर में हर साल एक वार्षिक धार्मिक यात्रा का आयोजन किया जाता है. इस जात्रा में शुक्रवार देर रात भगदड़ हुई, जिसमे 5 लोगों की मौत हुई और लगभग 50 लोगों के घायल होने की जानकरी मिली हैं.
कौन हैं लैराई देवी?
लैराई देवी मंदिर देवी लैराई देवी को समर्पित है. यह एक पूजनीय हिंदू देवी हैं, जिनकी पूजा मुख्य रूप से दक्षिण गोवा में स्थित शिरोडा गांव में की जाती है. यह वहां के स्थानीय लोगों और आसपास के क्षेत्रों में बसे लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है. देवी को शक्ति, रक्षक और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है. लैराई देवी उत्सव के दौरान मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र तब बन जाता है. यह उत्सव आमतौर पर मार्च के महीने में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है.
लैराई देवी की कहानी
लैराई देवी को लेकर गोवा में कई कहानियां प्रचलित हैं. जिसमें से एक कथा के अनुसार, लैराई देवी सात बहन और एक भाई की कहानी है. जो हाथी पर सवार होकर धरती पर पहुंचे तो लैराई को यह जगह इतनी पसंद आई कि उसने शिरगांव नामक स्थान पर रहने का फैसला किया. एक बार लैराई अपने भाई पर इसलिए गुस्सा हो गई क्योंकि उसने खाना पकाने के लिए लकड़ी नहीं लाई थी. उसने उसे लात मारी, लेकिन बाद में उसे बुरा लगा. इसके लिए उसने माफ़ी मांगने के लिए आग में से गुज़रना शुरू कर दिया. यह कृत्य एक परंपरा बन गई और हर साल शिरगांव जात्रा में मनाया जाता है.
लैराई देवी जात्रा
लैराई देवी जात्रा गोवा में देवी लैराई के सम्मान में मनाया जाता है. लैराई उत्सव के दौरान बहुत से लोग एकत्र होकर जश्न मनाने के साथ देवी की विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं. लैराई देवी जात्रा हर साल वैशाख शुक्ल पंचमी के तिथि को अयोजित की जाती है. जिसमें लगभग 15 फिट चौड़ी और 15 फिट लंबी होने के साथ 21 फिट ऊंची अग्नि की वेदी तैयार की जाती है. देवी द्वारा अंगारों पर चलने की स्मृति में भक्त गण भी इस वेदी के अंगारों पर चलते हैं.