धर्मनगरी पर चौटाला परिवार की बरसों से नजर, 20 वर्षों बाद एक बार फिर अभय और जिंदल आमने-सामने

धर्मनगरी पर चौटाला परिवार की बरसों से नज़र रही है। यहां 20 वर्षों बाद एक बार फिर अभय और जिंदल आमने-सामने हैं।इस बार भी अभय ने कुरुक्षेत्र से चुनावी रण में इसलिए ताल ठोकी है ताकि जीटी रोड बेल्ट पर अपने पुरान वर्चस्व को हासिल किया जा सके।
 
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धर्मनगरी पर चौटाला परिवार की बरसों से नज़र रही है। यहां 20 वर्षों बाद एक बार फिर अभय और जिंदल आमने-सामने हैं।इस बार भी अभय ने कुरुक्षेत्र से चुनावी रण में इसलिए ताल ठोकी है ताकि जीटी रोड बेल्ट पर अपने पुरान वर्चस्व को हासिल किया जा सके। पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीतते भी रहे हैं और कई चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन चौटाला परिवार के खुद मैदान में आने के बाद बात नहीं बनी है। जीटी रोड की कुरुक्षेत्र लोकसभा ऐसी सीट है, जिस पर चौटाला परिवार की बरसों से नज़र है। परिवार यहां से तीसरी बार चुनावी मैदान में आया है। रोचक पहलू यह है कि लोकदल को यहां के लोगों का समर्थन भी मिलता रहा है। 

अब एक बार फिर इनेलो प्रधान महासचिव और इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला चुनावी रण में हैं। अभय 20 साल बाद धर्मनगरी की इस महाभारत के लिए चुनावी दंगल में आए हैं। इससे पहले 2004 में उन्होंने कांग्रेस के नवीन जिंदल के मुकाबले चुनाव लड़ा था। संयोग ने 20 वर्षों बाद एक बार फिर अभय और जिंदल आमने-सामने होंगे लेकिन इस बार जिंदल कांग्रेस की बजाय भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

प्रदेश की राजनीति के पन्नों को अगर पलटें जो जीटी रोड पर इनेलो को अच्छा रिस्पांस मिलता रहा है। लोकसभा से अधिक विधानसभा चुनावों में इनेलो जीटी रोड बेल्ट पर अच्छा प्रदर्शन करती रही हैं। हालांकि 2005 के बाद से इनेलो सत्ता से दूर बनी हुई है। इस बीच, 2019 में चौटाला परिवार न इनेलो में बिखराव भी हो चुका है। पार्टी टूटने के चलते इनेलो कमजोर भी हुआ है। हालांकि अभय सिंह चौटाला पार्टी में हुए बिघटन के बाद भी रुके नहीं हैं। वे लगातार पार्टी की मजबूती के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

कुरुक्षेत्र सीट के जातिगत समीकरण ऐसे हैं, जिसकी वजह से यहां लोकदल के कई बार सांसद रहे हैं। प्रो. कैलाशो सैनी लगातार दो बार कुरुक्षेत्र से सांसद रह चुकी हैं। पूर्व में भी पार्टी यहां उल्लेखनीय प्रदर्शन करती रही है। इसी के चलते चौटाला परिवार इस सीट पर बरसों से नजरें गढ़ाए हुए है। 1996 के चुनावों में कैलाशो सैनी ने समता पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा और 2 लाख 40 हजार 395 वोट हासिल किए। इन चुनावों में भूतपूर्व सीएम चौ. बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) की टिकट पर ओमप्रकाश जिंदल ने चुनाव लड़ा। जिंदल ने 2 लाख 92 हजार 172 वोट प्राप्त कर जीत हासिल की। वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी तारा सिंह तीसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस को 1 लाख 42 हजार 302 मतों पर संतोष करना पड़ा।

कैलाशों ने पहली बार दी संसद में दस्तक

कैलाशो सैनी ने अगला चुनाव यानी 1998 में हरियाणा लोकदल (राष्ट्रीय) की टिकट पर लड़ा। उन्होंने 3 लाख 33 हजार 387 वोट हासिल कर पहली बार संसद में दस्तक दी। कंाग्रेस के कुलदीप शर्मा को उन्होंने चुनाव हराया। कुलदीप शर्मा को 1 लाख 91 हजार 867 वोट ही मिले थे। वहीं हविपा प्रत्याशी रहे जतेंद्र सिंह काका को 1 लाख 81 हजार 791 वोट मिले थे। इसके बाद कैलाशो ने 1999 में लगातार दूसरी बार इनेलो की टिकट पर 4 लाख 38 हजार 701 वोट लेकर जीत हासिल की। इतना ही नहीं, कैलाशों ओमप्रकाश जिंदल से अपनी पहली हार का बदला लेने में भी कामयाब रही। इस बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े जिंदल को 2 लाख 75 हजार 91 वोट मिले थे।

अभय ने 2004 में लड़ा था कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव

अभय चौटाला ने 2004 में इनेलो टिकट पर कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के नवीन जिंदल का यह पहला चुनाव था। जिंदल ने 3 लाख 62 हजार 54 वोट लेकर अभय चौटाला को 1 लाख 60 हजार 190 मतों के अंतर से चुनाव हराया। अभय को 2 लाख 1 हजार 864 मत हासिल हुए थे। वहीं भाजपा के गुरदयाल सिंह सैनी को 1 लाख 26 हजार 910 तथा हरियाणा विकास पार्टी के जितेंद्र सिंह काका ने 77 हजार 136 मत हासिल किए थे। यहां बता दें कि 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद बंसीलाल ने हविपा का कांग्रेस में विलय कर दिया था।

INLD का पंजाबी कार्ड भी नहीं चला

2009 के लोकसभा चुनावों में नवीन जिंदल से हार का बदला लेने के लिए इनेलो ने पंजाबी कार्ड खेला। पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा को चुनावी मैदान में उतारा। जिंदल ने 3 लाख 97 हजार 204 वोट लेकर अशोक अरोड़ा को चुनाव हराया। अरोड़ा को 2 लाख 78 हजार 475 वोट मिले। वहीं भाजपा के गुरदयाल सिंह सैनी ने इस बार 1 लाख 51 हजार 231 वोट लिए। इस चुनाव में दूसरे लाल यानी चौ. भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) टिक पर जसवंत सिंह चीमा ने चुनाव लड़ा। उन्हें महज 16 हजार 839 वोट मिले और हजकां अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई।

जब तीसरे नंबर पर पहुंचे जिंदल

लगातार दो बार के विजेता नवीन जिंदल 2014 में जीत की हैट्रिक के लिए कांग्रेस टिकट पर फिर से मैदान में आए। मोदी की लहर और दस वर्षों की एंटी इन्कमबेंसी के चलते जिंदल तीसरे स्थान पर जा पहुंचे। इस चुनाव में भाजपा टिकट पर राजकुमार सैनी ने 4 लाख 18 हजार 112 मत हासिल कर जीत हासिल की। इनेलो के बलबीर सिंह सैनी को 2 लाख 88 हजार 376 वोट मिले। वहीं जिंदल 2 लाख 87 हजार 722 मत ही जुटा पाए।

2019 में बेरुखी, अब भगवा रंग में

2019 के लोकसभा चुनावों से जिंदल ने खुद को अलग कर लिया। उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। ऐसे में कांग्रेस ने पूर्व मंत्री निर्मल सिंह पर दाव खेला। निर्मल सिंह को 3 लाख 4 हजार 38 वोट मिले। वहीं पहली बार लोकसभा के रण में आए नायब सिंह सैनी ने 6 लाख 88 हजार 629 वोट लेकर जीत हासिल की। वहीं अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला की जमानत भी नहीं बन पाई। 60 हजार 679 वोट लेकर वे पांचवें नंबर पर रहे। बसपा की शशि 75 हजार 625 मतों के साथ तीसरे और जजपा के जयभगवान शर्मा ‘डीडी’ 68 हजार 513 वोट लेकर चौथे नंबर पर रहे।