कांग्रेस का इतिहास दे रहा गवाही, हरियाणा में मिल गई जीत तो भी हुड्डा-सैलजा में संतुलन बनाना पड़ेगा भारी

हरियाणा में कांग्रेस 10 साल से सत्ता से बाहर है. इस चुनाव में उसे वापसी की आस दिख रही है. लेकिन यहां पर कांग्रेस की लड़ाई बीजेपी से ज्यादा अपनों से है. सूबे में आंतरिक कलक मची हुई है. हुड्डा और सैलजा खुद को सीएम पद का दावेदार बता रहे हैं. सवाल उठता है कि कांग्रेस को अगर यहां पर जीत मिल गई तो दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाएगी.

 
हरियाणा विधानसभा चुनाव

दिग्गजों में मुख्यमंत्री पद की लालसा कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित होती रही है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के बाद हरियाणा में ये देखा जा रहा है. प्रदेश में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. पार्टी बिना सीएम फेस के चुनाव में उतरी है. कहा जा रहा है कि ऐसा गुटबाजी से बचने के लिए किया गया है, क्योंकि भूपिंदर सिंह हुड्डा से लेकर कुमारी सैलजा तक इसपर दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस अगर हरियाणा फतह कर लेती है तो हुड्डा और सैलजा में कैसे संतुलन बनाएगी.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हुड्डा भले ही सीएम फेस ना हों, लेकिन कांग्रेस की जीत होने पर वह ही मुख्यमंत्री बनेंगे. जब हुड्डा सीएम बनेंगे तो सैलजा क्या करेंगी. उन्हें शांत रखने के लिए क्या कांग्रेस हुड्डा के मंत्रिमंडल में उनके नेताओं को तरजीह देगी. लेकिन दिग्गजों के बीच संतुलन बनाना ही कांग्रेस को भारी पड़ा है.मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ये देखा जा चुका है.

मध्य प्रदेश में सिंधिया की नाराजगी महंगी पड़ी

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के तीन दिग्गज हुआ करते थे, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया. इन तीनों के दम पर कांग्रेस यहां पर कई चुनाव लड़ी. 2020 में ये तिकड़ी टूट गई. 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत का इनाम नहीं मिलने पर सिंधिया ने बागी तेवर अपना लिया और 2020 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बागी होने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा और कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. शिवराज सिंह चौहान के हाथों में एक बार फिर राज्य की कमान आई.

सिंधिया बीजेपी में क्या गए, मध्य प्रदेश की जनता ने भी कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया. 2023 के चुनाव में भी उसको करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. हालांकि इस बार प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिला. बीजेपी ने मोहन यादव के हाथों में प्रदेश की कमान सौंपी. मध्य प्रदेश ऐसा राज्य रहा है जहां पर सत्ता विरोधी लहर का असर नहीं दिखा है. चुनाव दर चुनाव बीजेपी यहां पर मजबूत होकर आई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी ये दिखा. यहां पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमजोर होती सियासी जमीन का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं वो छिंदवाड़ा सीट तक नहीं बचा पाई. कमलनाथ के गढ़ में उसे हार का सामना करना पड़ा.

राजस्थान में कलह से गई सत्ता

जिस वक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस में आंतरिक कलह मची थी उसी दौरान राजस्थान में पार्टी इस संकट से गुजर रही थी. 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने थे. सचिन पायलट की नजर सीएम की कुर्सी पर थी, लेकिन पार्टी ने गहलोत को सीएम बनाकर पायलट के गुस्से को बढ़ाने का काम किया. एक वक्त तो ऐसा भी लगने लगा था कि सचिन पायलट भी कहीं सिंधिया जैसा बागी तेवर ना अपना लें. हालांकि पार्टी आलाकमान उन्हें मनाने में कामयाब रहा.

पार्टी के मनाने से पायलट शांत तो हुए लेकिन सीएम ना बनने की कसक उनके अंदर रही. कई मौकों पर ये दिखा भी. कांग्रेस ने जैसे-तैसे 5 साल सरकार को चला ली, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उसपर भरोसा नहीं जताया. यहां पर एक बार फिर बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई और भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. हालांकि विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा. यहां पर उसे 25 में से 8 सीटों पर जीत मिली.

छत्तीसगढ़ में भी नहीं बचा पाई ताज

मध्य प्रदेश, राजस्थान की तरह छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस में आंतरिक कलह मची थी. 2018 के चुनाव के बाद भूपेश सिंह बघेल और टीएस सिंहदेव ने कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ाया था. टीएस सिंहदेव को बघेल का विरोधी कहा जाता है. 2018 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद टीएस सिंहदेव सीएम की रेस में थे. लेकिन बाजी बघेल ने मारी थी. हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया, लेकिन पार्टी का प्रयास नाकाफी साबित हुआ और विधानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस का ये हाल तब हुआ, जब राज्य में बीजेपी को कमजोर समझा जा रहा है. कई जानकार ये तक चुके थे कि राज्य में कांग्रेस की वापसी तय है. यही नहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी कोई कमाल नहीं कर सकी. 11 सीटों में से उसे सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली.

हरियाणा के दिग्गजों को नहीं संभाल पाती कांग्रेस?

इन राज्यों में आंतरिक कलह के कारण हार का सामना करने के बाद कांग्रेस की लड़ाई अब हरियाणा में है. यहां भी पार्टी में कई कॉर्नर हैं. एक है हुड्डा का तो एक है कुमारी सैलजा का. तीसरा कॉर्नर रणदीप सुरजेवाला का है. कांग्रेस अब तक तो तीनों को एकसाथ रखने में कामयाब रही, लेकिन ये कब तक चलेगा ये बड़ा सवाल है, क्योंकि यहां पर कांग्रेस का दिग्गजों को संभालने का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. यहां पर उसे कई बार अपने नेताओं के बागी होने का सामना करना पड़ा है. इसमें राव इंद्रजीत से लेकर भजनलाल, बंसीलाल और देवीलाल तक जैसे नेता हैं.

कांग्रेस 10 साल बाद यहां पर वापसी की राह देख रही है. वह बिना किसी चेहरे के चुनाव में उतरी, लेकिन जानकारों का मानना है कि चुनाव जीतने पर हुड्डा ही सीएम बनेंगे. हुड्डा सीएम बनते हैं तो सैलजा को पार्टी कैसे संभालेगी. हरियाणा कांग्रेस में बागी नेताओं की लिस्ट में अगर सैलजा भी शामिल हो जाएं तो हैरान नहीं होगी, क्योंकि चुनाव से पहले ही बीजेपी की नजर उनपर है. पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर सैलजा को बीजेपी में शामिल होने का ऑफर दे चुके हैं. देखना होगा बीजेपी का यही ऑफर क्या चुनाव के बाद भी जारी रहेगा.