हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में आचार संहिता लागू, किसी नेता ने किया उल्लंघन तो कौन देगा सजा?
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के शेड्यूल की घोषणा हो गई है. आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव है, इसलिए चुनाव आयोग ने खास तैयारियां की हैं. घोषणा के साथ ही दोनों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. आइए जानते हैं कि अगर कोई आचार संहिता नहीं मानता है, तो उसको सजा कौन देगा.
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. चुनाव आयोग ने इसके शेड्यूल की घोषणा कर दी है. जम्मू-कश्मीर में तीन और हरियाणा में एक चरण में मतदान होगा. नतीजा 4 अक्तूबर को घोषित किया जाएगा. आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव है. इसलिए चुनाव आयोग ने खास तैयारियां की हैं. इसके साथ ही दोनों राज्यों में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है. आइए जानते हैं कि अगर कोई आचार संहिता नहीं मानता है, तो उसको सजा कौन देगा.
आदर्श आचार संहिता या चुनाव आचार संहिता चुनाव आयोग के दिशानिर्देशोंं का एक संग्रह होता है. इनके जरिए आयोग चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों एवं प्रशासनिक तंत्र को नियंत्रित करता है. इन दिशानिर्देशोंं में चुनाव घोषणा पत्र के नियम, भाषण, प्रचार, रैली और जुलूस से लेकर मतदान के दिन क्या करें और क्या न करें, जैसी तमाम जानकारियां दी गई होती हैं. आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य चुनाव को स्वच्छ और निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराना होता है.
उल्लंघन करने पर हो सकती है ये कार्रवाई
आदर्श आचार संहिता के कानूनी पहलू की बात करें है तो ये मानक राजनीतिक दलों की सहमति से ही तैयार किए जाते हैं. अगर कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो चुनाव आयोग राजनीतिक दलों, उनके प्रचारकों या फिर उम्मीदवारों को नोटिस जारी कर जवाब तलब करता है. इसके जवाब में नोटिस पाने वाले को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होती है. वह अपनी गलती मानते हुए लिखित में बिना शर्त माफी मांग सकता है. चुनाव आयोग ऐसा नहीं करने पर लिखित में उनके लिए निंदा पत्र जारी कर सकता है.
प्रतिबंध भी लगा सकता है चुनाव आयोग
चुनाव आयोग को यदि लगता है कि कोई राजनीतिज्ञ चुनाव प्रचार के दौरान माहौल खराब कर रहा है तो वह उस पर बैन भी लगा सकता है. इसके लिए भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 में चुनाव आयोग को अधिकार दिए गए हैं. यब बैन तभी हटाया जा सकता है, जब संबंधित नेता माफी मांगे और साथ ही यह वादा करे कि वह भविष्य में आचार संहिता का पालन करेगा. कोई राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी मिलता है तो उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी भी लगाई जा सकती है. इसके अलावा चुनाव आयोग उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज करा सकता है. ऐसे में आरोपित को जेल भी जाना पड़ सकता है.
इन मामलों में भी हो सकती है कार्रवाई
नेताओं और पार्टियों पर वोट के लिए जाति-धर्म अथवा भाषा के आधार पर तनाव पैदा करने पर कार्रवाई हो सकती है. चुनाव प्रचार के लिए पूजा स्थल का इस्तेमाल करने और मतदाताओं को घूस देने अथवा डराने-धमकाने पर भी वह आयोग की कार्रवाई की जद में आ सकता है. कोई राजनीतिक दल या उसके प्रत्याशी अगर मतदाताओं को बूथ तक लाने-ले जाने या मतदान केंद्र के सौ मीटर के दायरे में प्रचार करने अथवा सार्वजनिक बैठकोंं में बाधा डालते हैं तो भी कार्रवाई हो सकती है.
मतदाताओं को शराब-पैसे या लुभावने उपहार बांटने अथवा मतदान के समय से 48 घंटे पहले सार्वजनिक बैठक करने पर भी आरोपित के खिलाफ कानून के अनुसार कदम उठाए जा सकते हैं. इसके लिए चुनाव आचार संहिता के बजाय भारतीय न्याय संहिता के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 का सहारा लिया जाता है. इस अधिनियम में चुनावी अपराध और चुनाव के दौरान भ्रष्ट आचरण को सूचीबद्ध किया गया है. इसी के आधार पर दंड का प्रावधान भी किया गया है.
चुनाव की घोषणा संग लागू हो जाती है आचार संहिता
किसी भी चुनाव, चाहे लोकसभा हो विधानसभा या पंचायत चुनाव, इसकी घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता तुरंत लागू हो जाती है. विधानसभा चुनाव के दौरान यह उस पूरे राज्य में लागू होती है, जहां चुनाव होने होते हैं. चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक यह लागू रहती है.