मर्डर केस में किस आधार पर गुरमीत राम रहीम को किया गया बरी? जानें 163 पन्नों के आदेश की अहम बातें

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को 22 साल पुराने एक मामले में बरी कर दिया गया. हाई कोर्ट ने पाया कि सीबीआई अपराध के मकसद को स्थापित करने में विफल रही. सिरसा में स्थित डेरे का प्रमुख राम रहीम अभी रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है. वह अपनी दो शिष्याओं से दुष्कर्म के जुर्म में 20 साल की जेल की सजा काट रहा है.

 
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पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह और चार अन्य को डेरे के पूर्व प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के मामले में बरी कर दिया है. रंजीत सिंह की जुलाई 2002 में हत्या कर दी गई थी. अदालत ने राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. सिरसा में स्थित डेरे का प्रमुख राम रहीम अभी रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है. वह अपनी दो शिष्याओं से दुष्कर्म के जुर्म में 20 साल की जेल की सजा काट रहा है.

न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति ललित बत्रा की खंडपीठ ने पाया कि सीबीआई अपराध के मकसद को स्थापित करने में विफल रही और इसके बजाय अभियोजन पक्ष का मामला संदेह में डूबा हुआ था. सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, 10 जुलाई 2002 को रंजीत सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, क्योंकि राम रहीम को संदेह था कि मृतक एक गुमनाम पत्र के प्रसार के पीछे था, जिसमें उसकी महिला अनुयायियों के यौन शोषण के मामलों को उजागर किया गया था.

‘मृतक और राम रहीम में नहीं थी दुश्मनी’

अदालत ने सीबीआई की इस दलील को खारिज कर दिया कि रंजीत सिंह की हत्या इसलिए की गई क्योंकि राम रहीम अपनी महिला अनुयायियों के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाने वाले एक गुमनाम पत्र के प्रसार से नाराज था. अपने 163 पन्नों के फैसले में कोर्ट ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि मृतक और आरोपी नंबर 1 (राम रहीम) के बीच किसी भी तरह की दुश्मनी नहीं थी. न ही आरोपी के दिमाग में मृतक को खत्म करने के लिए अन्य सह-आरोपियों को निर्देश देने का कोई मकसद था.

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य के माध्यम से यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि जून, 2002 में आरोपी व्यक्तियों ने संबंधित स्थल पर मृतक से मुलाकात की और कथित पत्र प्रसारित नहीं करने के लिए धमकी दी. कोर्ट ने कहा कि गवाहों की गवाही में भौतिक विरोधाभास हैं. गवाहों के बयानों पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि आरोपी 26 जून 2002 को मृतक के घर नहीं गया था और न ही उक्त तारीख को मृतक को कोई धमकी दी गई थी. रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कथित हथियार का इस्तेमाल अपराध में कभी नहीं किया गया था.

जांच में ये हुईं 11 चूक:

  • अपराध में इस्तेमाल कार को सीबीआई ने जब्त नहीं किया
  • सीबीआई के तीन गवाहों ने कहा कि 4 हथियारबंद लोगों को देखा गया था पर कोई हथियार जब्त नहीं किया.
  • हत्या की साजिश रचने वाली जगह का साइट प्लान तैयार नहीं किया गया.
  • गवाहों ने कहा कि दो आरोपी खुलेआम रेस्टोरेंट में हत्या का जश्न मना रहे थे. सीबीआई ने रेस्टोरेंट के मालिक या करने वालों से पुष्टि नहीं की. न उन्हें गवाह बनाया.
  • मृतक के खून से सने कपड़े बरामद नहीं किए गए.
  • दो आरोपियों की शिनाख्त परेड नहीं कराई गई.
  • सीबीआई ने जो हथियार बरामद किए वो अपराध से नहीं जुड़ पा रहे.
  • हत्या की साजिश में मौजूद आरोपी की शिनाख्त नहीं की गई.
  • मौके पर मौजूद गवाह हमलावरों की हुलिया नहीं बता पाया.
  • गवाह ने 4 लोगों को हथियारों के साथ देखा लेकिन हथियारों के बारे में नहीं बता पाया.
  • गवाह ने कहा कि नजदीक से गोली मारी थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं है.