हरियाणा की वो सीटें जहां कांग्रेस का ‘कांग्रेस’ से मुकाबला, कहीं बिगड़ न जाए सत्ता का समीकरण?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की फाइट मानी जा रही है. मगर, कांग्रेस के लिए सियासी राह आसान नहीं है. कांग्रेस से बगावत करके चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवारों ने हरियाणा की फाइट काफी टाइट कर दी है.

 
Haryana Assembly Election

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनाम कुमारी सैलजा ही नहीं, डेढ़ दर्जन सीटों पर कांग्रेस बनाम कांग्रेस की लड़ाई बनी हुई है. कांग्रेस से टिकट न मिलने पर 24 उम्मीदवार बागी बनकर 19 सीटों पर किस्मत आजमा रहे हैं. कांग्रेस से बगावत कर चुनावी रण में उतरे नेताओं में कई पूर्व विधायक भी हैं. ऐसे में कांग्रेस को बीजेपी, इनेलो-बसपा और जेजेपी-आसपा गठबंधन के साथ-साथ अपने ही नेताओं से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. ऐसे में कहीं हरियाणा की सत्ता में कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर बागी पानी न फेर दें?

पांच साल पहले बीजेपी सत्ता में दूसरी बार आई थी. मगर, अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी थी. बीजेपी के लिए बहुमत की राह में उसके ही नेता रोड़ा बन गए थे. खासकर बीजेपी के वो नेता, जिन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे थे. इनमें से चार जीतने में भी कामयाब रहे थे. इस बार कांग्रेस को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. राज्य की 19 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के 24 बागी उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसके चलते पार्टी के लिए चिंता बढ़ गई है.

कांग्रेस बनाम कांग्रेस की फाइट

कांग्रेस से टिकट न मिलने पर तिगांव से पूर्व विधायक ललित नागर, गुहला चीका से दिल्लू राम बाजीगर, पुंडरी से रणधीर गोलन और सतविंदर राणा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं. इसी तरह से भिवानी से अभिजीत और नीलम अग्रवाल, पानीपत ग्रामीण से विजय जैन, गोहाना से हर्ष छिकारा, बड़ौदा से डॉ. कपूर नरवाल और उचाना कलां से वीरेंद्र घोरगारिया जैसे कांग्रेस के बागी उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

पृथला से नीटू मान, पटौदी से सुधीर चौधरी, पानीपत (शहरी) से रोहिता रेवड़ी, गुहाला से नरेश धांडे और डालूराम, झज्जर से संजीत, जींद से प्रदीप गिल, बहादुरगढ़ सीट से राजेश जून, बरवाला से संजना सातरोड और नीलम अग्रवाल, अंबाला कैंट से चित्रा सरवारा, भवानीखेड़ा से सतबीर रतेरा और बल्लभगढ़ से शारदा राठौड़ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. इसके चलते इन सभी सीटों पर कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवारों की टेंशन बढ़ गई है.

कांग्रेस के लिए बढ़ी सियासी टेंशन

कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों के निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है. कांग्रेस को इन सीटों पर बीजेपी और दूसरी विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अपने ही बागी नेताओं से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. इसके चलते मुकाबला रोचक हो गया है लेकिन कांग्रेस के सियासी टेंशन बढ़ गई है. हरियाणा में कांग्रेस ने अभी तक सिर्फ तीन बागियों को ही निलंबित किया है.

कांग्रेस ने अंबाला छावनी से चित्रा सरवारा, बहादुरगढ़ से राजेश जून और बल्लभगढ़ विधानसभा क्षेत्र से शारदा राठौर को बगावत करने के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया गया है. इसके अलावा किसी भी नेता पर कोई एक्शन नहीं लिया गया है. कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवारों ने बागी नेताओं पर कार्रवाई के लिए शीर्ष नेतृत्व से गुहार तक लगाई है. माना जा रहा है कि कांग्रेस के बागी नेता कम से कम एक दर्जन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ते नजर आ रहे हैं.

हरियाणा में हो रही कांटे की फाइट

हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की फाइट मानी जा रही है. तीन महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 10 संसदीय सीटों में से 5 सीटें कांग्रेस और पांच सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इतना ही नहीं वोट शेयर देखें तो कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को 47.61 फीसदी वोट मिले थे. इसमें कांग्रेस को 43.67 फीसदी और आम आदमी पार्टी को 3.58 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए को 46.11 फीसदी के करीब वोट मिले थे. कांग्रेस और बीजेपी के बीच लोकसभा चुनाव में सिर्फ 3 फीसदी वोट शेयर का अंतर था.

लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई थी. दस साल से हरियाणा की सत्ता में रहने के चलते बीजेपी को भले ही सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन कांग्रेस के लिए सियासी राह आसान नहीं है. कुमारी सैलजा की नाराजगी को बीजेपी ने मुद्दा बनकर कांग्रेस के दलित वोटबैंक का समीकरण गड़बड़ा दिया है. कांग्रेस के लिए जाट-दलित के साथ ओबीसी और अन्य वोटों को भी जोड़ने की चुनौती है. ऐसे में कांग्रेस से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवारों ने हरियाणा की फाइट काफी टाइट कर दी है. इसीलिए कांग्रेस अपने बागियों पर एक्शन लेने से बच रही है ताकि चुनाव के बाद अगर बहुमत का नंबर कम पड़ता है तो वो काम आ सकें?