हरियाणा में कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन पर क्यों नहीं बनी बात? ये हैं तीन बड़ी वजह
हरियाणा चुनाव के लिए राज्य की 90 सीटों में 89 पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. एक सीट सीपीएम को दी है. राहुल गांधी के चाहने के बावजूद कांग्रेस का आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है. इसके पीछे 3 बड़ी वजहें मानी जा रही हैं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस ने 49 और सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिए हैं. इस तरह राज्य की 90 में से 89 सीटों पर कैंडिडेट तय हो गए हैं. इस तरह तस्वीर साफ हो गई कि आम आदमी पार्टी आप से गठबंधन नहीं हुआ तो सीपीएम को एक सीट देकर अपने साथ रख लिया है. उम्मीदवारों के नाम की घोषणा में इस कदर देरी की गई, जिससे टिकट न पाने वाले नेता किसी और दल से लड़ने की तैयारी न कर पाएं.
राहुल गांधी के चाहने के बावजूद कांग्रेस का आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है. हालांकि, गठबंधन के लिए गंभीर दिखने की कोशिश में कांग्रेस ने आखिर तक 9 सीटें रोककर रखीं. फिर भी बात नहीं बन पाई. इसके पीछे 3 बड़ी वजहें मानी जा रही हैं.
- आम आदमी पाार्टी केजरीवाल के करीबी पत्रकार से नेता बने अनुराग ढांडा के लिए कलायत समेत ग्रामीण सीटें चाह रही थी. मगर, कांग्रेस उसके लिए तैयार नहीं थी.
- कांग्रेस 5 से ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं थी. साथ ही वो आम आदमी पार्टी को शहरी सीटें ही दे रही थी.
- कांग्रेस अपनी शर्तों पर समझौता चाहती थी. अब कांग्रेस को लगता है कि वो अपनी तरफ से संदेश देने में सफल रही कि इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के नाते वो सबको साथ लेकर चलना चाहती है. भले ही आप से बात न बन पाई हो. इसलिए वो झुकने को तैयार नहीं हुई.
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सपा और एनसीपी को नहीं मिली सीट
कांग्रेस ने भिवानी सीट सीपीएम के लिए छोड़कर गठबंधन के लिए अपनी गंभीर कोशिश का संदेश देने की कोशिश की है. वहीं सपा और एनसीपी को टिकट बंटवारे में सीट नहीं मिल पाई. इसके पीछे कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि आखिरी वक्त में उनके सिंबल पर प्रत्याशी लड़ाने से नुकसान हो सकता है. ये सपा और एनसीपी से चर्चा करके हुआ है.
हालांकि, समाजवादी पार्टी को महाराष्ट्र में सीटें दिए जाने का भरोसा दिया गया है. वहीं, पार्टी में हिसार से सांसद जेपी के बेटे विकास कलायत से, अंबाला से सांसद वरुण मुलाना की पत्नी पूजा चौधरी को मुलाना से और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला के बेटे आदित्य कैथल से टिकट पाने में कामयाब रहे. सांसदों को टिकट नहीं देने के फैसले के तहत खुद रणदीप सुरजेवाला और कुमारी सैलजा को टिकट नहीं मिला.
राहुल के करीबी वीरेंद्र टिकट पाने में रहे कामयाब
दिलचस्प ये रहा कि लगातार दो बार से हारे उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने का फैसला स्क्रीनिंग कमेटी ने किया था. मगर, लेकिन राहुल के करीबी लगातार 3 बार हारे वीरेंद्र राठौर फिर टिकट पाने में कामयाब रहे. कुल मिलाकर 89 उम्मीदवारों की सूची में 70 नाम हुड्डा खेमे के, 9 नाम सैलजा खेमे के, 2 नाम सुरजेवाला खेमे के, 7 नाम सीदे नेतृत्व ने तय किए और एक सीट अजय यादव खेमे को मिली है.
आलाकमान ने ये भी साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं होगा. चुनाव के बाद विधायकों से राय लेकर सीएम का फैसला होगा. शायद इसीलिए सीएम की दावेदारी जता रहे सुरजेवाला और सैलजा 2004 के चुनाव की याद दिलाकर समर्थकों को संदेदेश दे रहे हैं कि तब भजनलाल समर्थकों को ज्यादा टिकट मिले थे लेकिन सीएम उस वक्त सांसद रहे भूपिंदर हुड्डा बने थे.