जंग से तबाह हो रही जिंदगियां, हथियार बेचकर मुनाफा कमाने का ये खेल कब रुकेगा?
दुनिया में होने वाले इन युद्ध ने हथियारों का बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में दुनियाभर में हथियारों का बाजार 2443 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो साल 2022 से 6.8 प्रतिशत ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2009 के बाद से हर साल इसमें इजाफा देखने को मिल रहा है.
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी… साहिर लुधियानवी का ये शेर भले ही दो मुल्कों में होने वाली जंग का असली चेहरा बेनकाब करता हो लेकिन आज दुनिया में अपनी धाक जमाने और सबसे बड़ी ताकत बनने की होड़ में ये मौजू साबित नहीं होता. दुनिया इस वक्त दो बड़े युद्ध की गवाह है. कोरोना के वक्त भड़के रूस-यूक्रेन युद्ध और पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुए इजराइल-हमास युद्ध ने अब तक लाखों लोगों की जान ली है. इसके बावजूद दुनिया का कोई मुल्क इस जंग को रोकने की कोशिश तक नहीं कर रहा है. ऐसा क्यों है कि दुनिया का बॉस कहा जाने वाला अमेरिका, इन जंग को रोकने के बजाय इस बारूदी आग में घी डालने का काम कर रहा है.
सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है कि क्योंकि दुनिया की कई बड़ी महाशक्तियां जो हर वक्त मानवाधिकार की दुहाई देती हैं, वो एक मुल्क का साथ देकर इन जंग को और सुलगाने का काम कर रही हैं. ऐसे में क्या ये कहना सही होगा कि कई देश मिलकर एक देश का नामोनिशान मिटाने की कोशिश में जुटे हैं. अगर आप इसे ही हकीकत मान रहे हैं तो आप गलत हैं. दरअसल एक देश का साथ देना किसी मुल्क को खत्म करने की ओर बढ़ाया जाने वाला कदम नहीं है बल्कि सोची समझी रणनीति है. ये किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने की एक चाल है.
बता दें कि दुनिया में होने वाले इन युद्ध ने हथियारों का बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में दुनियाभर में हथियारों का बाजार 2443 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो साल 2022 से 6.8 प्रतिशत ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2009 के बाद से हर साल इसमें इजाफा देखने को मिल रहा है.
92 से ज्यादा देश जंग झेल रहे
इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस के ताजा ग्लोबल पीस इंडेक्स के मुताबिक भले ही दुनिया की नजर रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास जंग पर टिकी हो लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनियाभर में इस वक्त सबसे ज्यादा जंग लड़ी जा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक इस नाजुक वक्त में 92 से ज्यादा देश जंग से जूझ रहे हैं. साल 2023 के आंकड़ों के मुताबिक इस जंग में 162000 लाख लोगों की जान जा चुकी है. हालांकि असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं.
दुनियाभर के देशों में मची हथियारों की होड़
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक इस वक्त दुनियाभर में हथियार बेचने और खरीदने की होड़ मची हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप, एशिया, ओशिनिया और मध्य पूर्व में हथियारों का सौदा सबसे तेजी से हो रहा है. रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो जंग की आड़ में अवैध रूप से हथियारों की बिक्री का नेटवर्क और बाजार भी खड़ा हो चुका है. कई देशों की सरकारें पर्दे के पीछे से इस खेल में शामिल हैं. अकेले यूरोप की बात करें तो तीस साल में पहली बार यूरोप में हथियारों की खरीद में 13% की वृद्धि हुई है.
हथियार बेचने कई नए प्लेयर भी उतरे
पिछले कई सालों से हथियारों की सौदेबाजी में कुछ बड़ी महाशक्तियों का दबदबा था लेकिन अब मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर में गुटबाजी खत्म होती दिखाई पड़ती है. हथियार के बाजार में कई नए देशों की भी एंट्री हो गई है. इसमें स्वीडन, दक्षिण कोरिया, ईरान, तुर्की और चीन जैसे देश शामिल हैं. भारत भी अब हथियार बेचने वाले नए प्लेयर में शामिल हो चुका है. इस लिस्ट को देखें तो सबसे चौंकाने वाली बात स्वीडन को लेकर दिखती है. जो देश शांति का नोबेल पुरस्कार देता है वो ही दुनिया के कई मुल्कों को हथियार भी एक्सपोर्ट करता है.
जंग का डर दिखा हथियार बेचने की चाल
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हथियार बेचने के बड़े प्लेयर हथियार बनाने में जितना पैसा लगाते हैं उतना ही दिमाग उसका बाजार ढूंढने में भी लगाते हैं. बड़े देश हथियार के क्षेत्र में हर साल अपनी एक बड़ी टीम रिसर्च में लगाते हैं. हकीकत तो ये है कि दुनिया भर में असली जंग के दौरान तो हथियारों की बिक्री होती ही है, इसके साथ युद्ध का नैरेटिव सेटकर युद्ध का आर्टिफिशियल रिस्क भी क्रिएट किया जाता है. इसे सही से समझने के लिए ताइवान को देखिए. ताइवान की जियो लोकेशन के कारण अमेरिका जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो गया है. ताइवान को लगातार चीन से खतरा बताकर, अमेरिका ने अकेले पिछले दो सालों में ताइवान को 17 लाख करोड़ रुपए के हथियार बेचे हैं. यही हाल यूक्रेन और इजराइल जंग में भी देखने को मिला है. गौर करें तो जब कभी भी किसी देश के बीच जंग शुरू होती है वैसे ही दादा बनकर सबसे पहले अमेरिका पहुंचता है. इस लिस्ट में ब्रिटेन, रूस, फ्रांस का नाम भी सबसे ऊपर है.
जंग के बीच ड्रोन बन रहा पहली पसंद
रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो सभी देश अब जमीनी हथियारों से ज्यादा ड्रोन हमले पर विश्वास कर रहे हैं. यही कारण है कि फाइटर ड्रोन की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. पिछले साल दुनियाभर में फाइटर ड्रोन का बाजार 5 लाख करोड़ रुपए का था, जिसके अगले साल तक 25 करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है.
भारत ने पिछले साल 21 हजार करोड़ के हथियार बेचे
भारत भी अब हथियार बेचने वाला प्लेयर बन चुका है. PIB की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023-24 में सरकारी और प्राइवेट कंपनियों को मिलाकर भारत ने 1.27 लाख करोड़ से ज्यादा के हथियार बनाए हैं, जिनमें से 21,083 करोड़ के हथियार बेचे हैं. इससे पहले साल 2022-23 में भारत ने 15920 करोड़ रुपए के हथियार बेचे थे. PIB की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 साल में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 31 गुना से ज्यादा हो गया है.