पाकिस्तान की पोल खोलने अल्जीरिया पहुंचे ओवैसी जिस अब्दुल कादिर की कब्र पर पहुंचे वो कौन थे?

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इस समय अल्जीरिया में एक सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में मौजूद हैं. ओवैसी ने अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम के नायक अमीर अब्दुल कादिर की कब्र पर भी श्रद्धांजलि अर्पित की. अमीर अब्दुल कादिर 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अल्जीरियाई प्रतिरोध के प्रमुख नेता थे. ओवैसी ने उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा की.

 
असदुद्दीन ओवैसी

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इस समय अल्जीरिया में हैं और सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं. शनिवार को उन्होंने भारतीय समुदाय को संबोधित किया था. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान पर जमकर हमला बोला था. सोमवार को ओवैसी अब्दुल कादिर की कब्र पहुंचे. यहां उन्होंने जियारत की.

अमीर अब्दुल कादिर 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी औपनिवेशिक आक्रमण के खिलाफ अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे. ओवैसी ने एक्स पर अपनी यात्रा के बारे में जानकारी शेयर की और अमीर अब्दुल कादिर के साहस और नेतृत्व की प्रशंसा की. अब्दुल कादिर कौन थे? आइये जानते हैं.

कौन थे अमीर अब्दुल कादिर ?

अमीर अब्दुल कादिर एक इस्लामी विद्वान और सूफी संत थे. उन्होंने 1830 में फ्रांस के अल्जीरिया पर आक्रमण के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध का नेतृत्व किया था. इस दौरान उन्होंने अरब और बर्बर जनजातियों को एकजुट किया और कई वर्षों तक फ्रांसीसी सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक कई सालों तक लड़े. उनकी शिक्षा, धार्मिकता, और वंश ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता बनाया था. उन्होंने फ्रांसीसी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अल्जीरियाई प्रतिरोध का प्रतीक बन गए. उन्हें अलजीरिया का स्वतंत्रता संग्राम के नायक कहा जाता है.

1860 में दमिश्क के ईसाई समुदाय को नरसंहार से बचाने के लिए अमीर अब्दुल कादिर का महत्वपूर्ण रोल था. यही कारण है कि उन्हें दुनिया भर से सम्मान और पुरस्कार दिलाए. पश्चिमी अल्जीरिया पहले से ही कई ओटोमन विरोधी विद्रोहों का केंद्र रहा था, जिसके कारण फ्रांसीसी के लिए समन्वित प्रतिरोध के रास्ते में बहुत कम बदलाव हुए. यह वह समय था जब अब्दुल कादिर सामने आए.

अल्जीरिया के भीतर, वह फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के प्रसार का विरोध करने के लिए कई अरब और बर्बर जनजातियों को एकजुट करने में सक्षम थे. कई बार उन्होंने आदिवासी जनजातियों को एकत्र का विरोध किया.

कम उम्र में बने थे अमीर अल-मुमिनिन

1832 की सर्दी के समय पश्चिमी जनजातियों की एक बैठक में, उन्हें अमीर अल-मुमिनिन चुना गया था. यह एक अरबी उपाधि है, इसका मतलब विश्वास करने वालों का कमांडर होता है. इसके पहले ये पद उनके पिता को दिया गया था. हालांकि उन्होंने उम्र का हवाला देते हुए इसे लेने से इंकार कर दिया था. अब्दुल कादिर को न केवल उनकी उम्र के कारण बल्कि उनकी शिक्षा और धर्म निष्ठा के कारण चुना गया था. पांच दिन बाद मस्कारा की मस्जिद में नियुक्ति का ऐलान किया गया था. ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने अपने दुश्मनों को भी सम्मान दिलाया था.