न्यूजीलैंड में क्यों सड़क पर उतरे 35 हजार लोग, इस बिल का कर रहे जमकर विरोध-प्रदर्शन
न्यूजीलैंड में इस समय माओरी समुदाय का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. यह देश का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर नजर आ रहे हैं. यह प्रदर्शन पिछले सप्ताह संसद में पेश हुए एक विधेयक प्रस्ताव के विरोध में किया जा रहा है.
न्यूज़ीलैंड की राजधानी वेलिंगटन में स्वदेशी “हाका” के नारे गूंज उठे, क्योंकि हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर एक बिल के विरोध में प्रदर्शन किया. बिल का विरोध करने वालों की माने तो यह बिल संस्थापक सिद्धांतों पर प्रहार करता है और माओरी लोगों के अधिकारों को कमजोर करता है. हिकोई मो ते तिरिटी मार्च दस दिन पहले देश के सुदूर उत्तर में शुरू हुआ था, और हाल के दशकों में देश के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों में से एक में उत्तरी द्वीप की लंबाई को पार कर गया है. हिकोई मार्च मंगलवार को न्यूजीलैंड की संसद के बाहर समाप्त हुआ, जहां लगभग 35,000 लोगों ने प्रदर्शन किया और सांसदों से इस महीने की शुरुआत में लिबरटेरियन एसीटी न्यूजीलैंड पार्टी द्वारा पेश किए गए संधि सिद्धांत विधेयक को खारिज करने की मांग की.यह विधेयक कथित तौर पर वेटांगी की संधि को फिर से परिभाषित करने का प्रयास करता है.
बढ़ते विरोध को देखते हुए इस कानून के पारित होने की संभावना न के बराबर है.क्योंकि अधिकांश पार्टियों ने इसे खारिज करने के लिए वोटिंग की अपील की है. लेकिन इसकी शुरूआत मात्र से ही देश में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई है. स्वदेशी अधिकारों पर बहस एक बार फिर से शुरू हो चुकी है.
न्यूजीलैंड में माओरी और उनका इतिहास
माओरी न्यूज़ीलैंड के मूल निवासी हैं और उनके इतिहास और संस्कृति का देश की संस्कृति में अहम योगदान है.माओरियों को दो बड़े द्वीपों का मूल निवासी माना जाता है. जिन्हें अब न्यूजीलैंड के नाम से जाना जाता है. कथित तौर पर वे 1300 के दशक में पोलिनेशिया से डोंगी यात्रा पर आए थे. तभी से ये न्यूजीलैंड में बस गए. उन्होंने यहां रहकर अपनी संस्कृति और भाषा को विकसित किया. आज ये अलग-अलग जनजातियों के रूप में पूरे न्यूजीलैंड में फैले हुए हैं.
माओरियों के रहने वाले द्वीपों को एओटेरोआ कहा जाता था. 1840 ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के नियंत्रण के बाद इसका नाम बदलकर न्यूजीलैंड कर दिया गया. साल 1947 में न्यूजीलैंड को अंग्रेजों से आजादी मिल गई थी.
क्या है ट्रीटी ऑफ वेटांगी की संधि?
‘ट्रीटी ऑफ वेटांगी’ की संधि 1840 में ब्रिटिश क्राउन और 500 से अधिक माओरी नेताओं के बीच हस्ताक्षरित की गई थी. इसे न्यूजीलैंड का संस्थापक दस्तावेज माना जाता है. इसे माओरी और यूरोपीय न्यूजीलैंडवासियों के बीच सत्ता साझा करने के समझौते के रूप में भी देखा जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, संधि को मूल रूप से माओरी और ब्रिटिश के बीच मतभेदों को सुलझाने के उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया था. हालांकि, संधि के अंग्रेजी और ते रेओ संस्करणों में कुछ स्पष्ट अंतर हैं, जिसके कारण माओरियों को कथित तौर पर आजादी के बाद भी न्यूजीलैंड में अन्याय सहना पड़ता रहा है.
संधि सिद्धांत विधेयक
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में, न्यूजीलैंड में 978,246 माओरी हैं, जो देश की 5.3 मिलियन आबादी का लगभग 19 प्रतिशत हैं. ते पति माओरी, या माओरी पार्टी, संसद में उनका प्रतिनिधित्व करती है और वहां की 123 सीटों में से छह पर उसका कब्जा है. सांसद डेविड सेमोर, जो स्वयं माओरी हैं, उन्हीं ने संसद में संधि सिद्धांत विधेयक पेश किया. वह एसीटी पार्टी के सदस्य हैं, जो न्यूजीलैंड की गठबंधन सरकार में एक भागीदार है.
सेमोर की पार्टी के अनुसार, वेटांगी की संधि की दशकों से गलत व्याख्या की जा रही है, जिससे न्यूजीलैंडवासियों के लिए दोहरी प्रणाली का निर्माण हुआ है. जहां माओरी को विशेष अधिकार दिया जाता है. संधि सिद्धांत विधेयक संधि के सिद्धांतों को विशिष्ट परिभाषा देकर “जाति के आधार पर विभाजन” को समाप्त करने का प्रयास करता है. फिर ये सिद्धांत सभी न्यूज़ीलैंडवासियों पर लागू होंगे, चाहे माओरी हों या नहीं. निवर्तमान प्रधान मंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने सेमोर के बिल के प्रति अपना विरोध जताया है. जिसका अर्थ है कि जब संसदीय वोट की बात आती है तो यह किसी भी कीमत पर संसद में पास नहीं हो सकता है.
बिल विवादास्पद क्यों है?
पिछले हफ्ते संसद में बहस के लिए बिल पेश किए जाने के बाद, 22 वर्षीय माओरी पार्टी के सांसद हाना-राविती माईपी-क्लार्क ने इसे आधा फाड़ दिया. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी हुआ है. जिसके बाद न्यूजीलैंड में व्यापक स्तर पर विरोध देखने को मिल रहा है. यह बिल 1840 की वेटांगी संधि से जुड़ा है. तब यह तय हुआ था कि माओरी जनजातियों ने ब्रिटिश हुकूमत को स्वीकार कर दिया था. इसके बदले उनकी भूमि और अधिकारों की रक्षा का वादा किया गया था. लेकिन अब जो विधेयक न्यूजीलैंड की संसद में हाना राविती ने फाड़ा, उसमें सभी नागरिकों पर समान सिद्धांत लागू करने का जिक्र है. इसे माओरी जनजाति के नेता अपने स्वदेशी अधिकारों का हनन मानते हैं.