मर जाऊंगा लेकिन PAK नहीं जाऊंगा…कौन है J-K पुलिस का वो जवान जिसे पाकिस्तान जाने को कहा गया
पहलगाम अटैक के बाद सरकार ने पाकिस्तान के लोगों को भारत से डिपोर्ट करने का फैसला लिया. इसी के बाद एक जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान की भी पहचान पाकिस्तानी के रूप में की गई और जवान के 8 भाई-बहनों समेत उन्हें नोटिस जारी किया गया. इस नोटिस को लेकर जवान ने कहा, मर जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगा.

पहलगाम अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त एक्शन लिया है. इसी के चलते भारत में रह रहे पाकिस्तानियों को उनके मुल्क वापस भेजने का आदेश दिया गया. 26 अप्रैल वो तारीख है जो जम्मू-कश्मीर के पुलिस के जवान के लिए मुश्किल बन कर सामने आई. 26 अप्रैल को इफ्तिखार अली को एक वरिष्ठ अधिकारी ने फोन करके कहा कि उन्हें और उनके आठ भाई-बहनों को भारत छोड़ना होगा क्योंकि उन्हें पाकिस्तान का नागरिक माना गया है.
वरिष्ठ अधिकारी की यह बात सुन कर इफ्तिखार के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. इफ्तिखार ने जम्मू-कश्मीर पुलिस में 27 साल तक सेवा की है. उन्होंने कहा भारत के अलावा उन के पास कोई ठिकाना नहीं है, यहां ही उनका घर और परिवार है. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से कहा कि वो सीमा पार करने के बजाय “खुद को मार डालेंगे”.
“मैंने भी सिर्फ पाकिस्तान के बारे में सुना है”
इफ्तिखान अली ने वरिष्ठ अधिकारी से कहा आपके ही तरह मैंने भी सिर्फ पाकिस्तान के बारे में सुना है. इफ्तिखार जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के सलवाह गांव का 45 वर्षीय कांस्टेबल है. उन्होंने कहा मेरी पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, दोस्त सब भारत में हैं. पाकिस्तान मैं मेरा कुछ भी नहीं है. कांस्टेबल को अपने 8 भाई-बहनों के साथ भारत छोड़ने का नोटिस 26 अप्रैल को जारी हुआ था. इसी के बाद 29 अप्रैल वो तारीख थी जिस दिन सभी पाकिस्तानियों को भारत छोड़ कर जाना था
मर जाऊंगा लेकिन PAK नहीं जाऊंगा
पुंछ के मेंढर पुलिस स्टेशन से उनके वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें पुंछ के उपायुक्त की तरफ से जारी किए गए ‘भारत छोड़ो’ नोटिस के बारे में फोन किया था. वो कहते हैं, खुद को पाकिस्तानी नागरिक करार दिए जाने की बात सुनकर मैं हैरान रह गया. मैंने उनसे कहा कि मैं इस पर हस्ताक्षर करने के बजाय मर जाना पसंद करूंगा, लेकिन इसी के बाद मैंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसी के बाद जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी.
कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
कोर्ट के आदेश के चलते इफ्तिखार अली और उनके आठ भाई-बहन – बड़े भाई जुल्फकार अली, 49, मोहम्मद शफीक, 60, और मोहम्मद शकूर, 52; और उनकी बहनें शाज़िया तब्सम, 42, कौसर परवीन, 47, नसीम अख्तर, 50, अकसीर अख्तर, 54, और नशरून अख्तर, 56 को भारत छोड़कर नहीं जाना पड़ा और वो सभी अपने देश वापस आ गए हैं.
हालांकि, जहां इफ्तिखार और उनके भाई-बहन को भारत छोड़ कर जाने का नोटिस मिला था. वहीं, उन की पत्नी और तीन नाबालिग बेटों को भारत से जाने का नोटिस नहीं दिया गया था क्योंकि उनकी पत्नी भी भारतीय हैं और बच्चे भी भारत में ही पैदा हुए हैं.
याचिका में क्या-क्या कहा गया
इफ्तिखार अली दो साल के थे जब उनके माता-पिता, फक़ुर दीन और फातिमा बी, उन्हें पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर ले आए. अपनी याचिका में, इफ्तिखार और उसके भाई-बहनों ने कहा कि उनके पिता फक़ुर दीन 1955 के नागरिकता अधिनियम के अनुसार भारतीय नागरिक थे. उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास सलवाह गांव में लगभग 17 एकड़ जमीन और एक घर है.
साथ ही उन्होंने कहा कि उनके पिता को “1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान के लागू होने के समय भी” जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी माना जाता था. स्थायी निवासी प्रमाणपत्र एक दस्तावेज था जो पहले जम्मू और कश्मीर स्थायी निवासी प्रमाणपत्र (प्रक्रिया) अधिनियम, 1963 के तहत जारी किया गया था, जो पहले जम्मू और कश्मीर राज्य में किसी के स्थायी निवास को साबित करने के लिए काफी था, लेकिन 2019 में आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद वो भी अस्तित्व में नहीं रहा.
याचिका के अनुसार, साल 1965 के युद्ध के दौरान, पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, जिसमें वो जगह भी शामिल थी जहां फक़ुर दीन और उनकी पत्नी फातिमा बी अपने तीन बच्चों के साथ रहते थे. नतीजा यह हुआ कि परिवार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के त्रालखाल में एक कैंप में वर्षों बिताए, इस दौरान उनके छह और बच्चे हुए.
क्षेत्र के स्थानीय लोगों का दावा है कि फक़ुर दीन और उनका परिवार 1983 में सलवाह लौट आए थे. इस साल की शुरुआत से कटरा में तैनात इफ्तिखार 90 के दशक के अंत में राज्य पुलिस में शामिल हुए. वो बताते हैं कि उनकी पहली पोस्टिंग 1998 में रियासी जिले के गुलाबगढ़ इलाके में देवल पुलिस पोस्ट पर हुई थी.
भारत में रहने का मिला मौका
इस हफ्ते की शुरुआत में, जब उसके भाई-बहनों को अटारी सीमा पर ले जाया गया था, तब भी उसने अपने भाई जुल्फिकार के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, फिर, दोनों भाइयों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया और बेलिचराना में रखा गया, वे अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे थे.
पुलिसकर्मी का कहना है कि उनके लौटने के बाद से घर पर लगातार आने वालों का आना-जाना लगा हुआ है और सभी अपनी शुभकामनाएं दे रहे हैं. वह कहते हैं, ”इसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूंगा. ‘