RSS ही नहीं, इस मुस्लिम संगठन के कार्यक्रमों में भी सरकारी कर्मचारियों के जाने पर था प्रतिबंध, जानें क्या था वो आदेश

आदेश में केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 के उन आदेशों को संशोधित किया है, जिनमें RSS की शाखा और दूसरी गतिविधियों में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई, दंडात्मक प्रावधान लागू किए गए थे. सरकार की ओर से 9 जुलाई 2024 को इससे जुड़ा आदेश जारी किया गया है.

 
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केंद्र सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तमाम गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंधों को हटा लिया है. जिसे लेकर कांग्रेस पार्टी सवाल उठा रही है. दरअसल, पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने समय-समय पर सरकारी कर्मचारियों पर संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी. RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को कड़ी सजा देने तक का प्रावधान लागू किया गया था.

हालांकि, इस बीच मध्यप्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने इस आदेश को रद्द कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी केंद्र सरकार के स्तर पर यह आदेश वैलिड माना जाता रहा है. वहीं इस मामले में एक केस इंदौर की अदालत में चल रहा था, जिस पर अदालत ने केंद्र सरकार से उसका नजरिया भी मांगा था.

केंद्र सरकार का बड़ा फैसला

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में केंद्रीय कर्मचारियों के शामिल होने पर लगी 58 साल पुरानी रोक हटा दी है. इस आदेश में केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 के उन आदेशों को संशोधित किया है, जिनमें RSS की शाखा और दूसरी गतिविधियों में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई, दंडात्मक प्रावधान लागू किए गए थे. सरकार की ओर से 9 जुलाई 2024 को इससे जुड़ा आदेश जारी किया गया है.

58 साल पुराने आदेश में क्या था?

आज से करीब 58 साल पहले 30 नवंबर 1966 को इंदिरा गांधी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के RSS और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया था. इस आदेश में कहा गया था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल या राजनीति में भाग लेने वाले किसी संगठन का सदस्य नहीं होगा, न ही उससे किसी तरह से जुड़ा होगा. आदेश के मुताबिक सरकारी कर्मचारी ना तो ऐसे किसी संगठन के किसी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि में भाग लेगा, ना चंदा देगा, ना ही किसी और तरीके से मदद करेगा.

1966 के आदेश में सरकार ने लिखा था कि चूंकि सरकारी कर्मचारियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमात-ए-इस्लामी की सदस्यता और उनकी गतिविधियों में भागीदारी के संबंध में सरकार की नीति के बारे में कुछ संदेह जताया है, इसलिए यह स्पष्ट किया जाता है कि इन दोनों संगठनों की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के नियम 5 के उपनियम (1) के प्रावधान लागू होंगे. कोई भी सरकारी कर्मचारी, जो RSS या जमात-ए-इस्लामी संगठन या उनकी गतिविधियों का सदस्य है, या किसी भी तरह से उनसे जुड़ा हुआ है, उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.

क्या है जमात-ए-इस्लामी ? इंदिरा ने RSS से की थी तुलना

जमात-ए-इस्लामी की स्थापना आजादी से पहले साल 1941 में इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदुदी ने की थी, यह एक इस्लामिक-राजनीतिक संगठन था. मिस्त्र में बने मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह जमात-ए-इस्लामी अपनी तरह का पहला संगठन था जिसने इस्लाम की आधुनिक संकल्पना के आधार पर एक विचारधारा को तैयार किया. हालांकि आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी कई धड़ों में बंट गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद प्रमुख थे.

जमात-ए-इस्लामी कैडर आधारित संगठन था. आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी का विस्तार और बढ़ता गया और पढ़े-लिखे युवा, मध्यम स्तरीय सरकारी कर्मचारी भी इसके साथ जुड़ते चले गए. यही नहीं इस संगठन ने अपनी जड़ें दुनियाभर में फैलानी शुरू कर दीं. जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, जमात-ए-इस्लामी ब्रिटेन और जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर कुछ प्रमुख नाम हैं.

इंदिरा गांधी सरकार में 1966 में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने या जुड़ने पर रोक लगाई गई थी. यही नहीं 1975 में इस पर 2 साल और 1990 में करीब 3 साल का प्रतिबंध भी लगाया था. वहीं वर्तमान में मोदी सरकार ने साल 2019 में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) को घाटी में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार मानते हुए 5 साल के लिए बैन लगा दिया. इस संगठन पर टेरर फंडिंग और आतंकियों को शरण देने का भी आरोप है. बता दें कि जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) ने 1971 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव भी लड़ा था हालांकि वो एक भी सीट नहीं जीत पाया.

इससे काफी अलग है जमात-ए-इस्लामी हिंद

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) और जमात-ए-इस्लामी हिंद दोनों अलग-अलग संगठन हैं. जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) ने 1953 में अपना संविधान भी बनाया था. यह अलगाववादी विचारधारा और कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन करता है. इस पर कश्मीर में युवाओं का ब्रेनवॉश कर उनका इस्तेमाल आतंक के लिए करने का भी आरोप है. वहीं जमात-ए-इस्लामी हिंद एक सामाजिक संगठन है जो देश में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े क्षेत्र में काम करता है.