भगवद गीता की शिक्षाएं मौलिक रूप से नैतिक हैं, धार्मिक नहीं: गुजरात हाई कोर्ट

गुजरात में साल 2022 में स्कूलों में भगवद गीता पढ़ाए जाने को लेकर ऐलान हुआ था. इसी को लेकर हाईकोर्ट में PIL दायर की गई थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, भगवद गीता हमारी संस्कृति है, यह कोई धार्मिक दस्तावेज नहीं है. यह नैतिक है. भगवद गीता सिर्फ मोरल साइंस है. इस में कोई धार्मिक उपदेश नहीं है.

 
गुजरात

गुजरात सरकार ने साल 2022 में ऐलान किया था कि स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जाएगी. इसी को लेकर अब गुजरात हाई कोर्ट ने सुनवाई की है. गुजरात हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की बेंच ने इस मामले में 21 नवंबर को सुनवाई की. हाईकोर्ट ने कहा, भगवद गीता की शिक्षाएं मौलिक रूप से नैतिक हैं, धार्मिक नहीं.

इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) कहती है कि धर्मनिरपेक्षता की भावना में सभी धर्मों के सिद्धांतों को पढ़ाया जाना चाहिए और राज्य के पास इस तरह का प्रस्ताव जारी करने का कोई अधिकार नहीं है. अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यह पहल केवल शिक्षाओं को लागू करने के लिए थी. कुछ देर तक मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने इसे मामले को अगले महीने के लिए सूचीबद्ध कर दिया है.

याचिकाकर्ता ने क्या कहा?

सरकार ने साल 2022 में कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए स्कूल में गीता के मूल्यों और सिद्धांतों को सीखना अनिवार्य करने का ऐलान किया था. इसी के चलते कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी. याचिकाकर्ता संगठन-जमीयत उलेमा-ए-हिंद गुजरात और जमीयत उलेमा वेलफेयर ट्रस्ट ने भी प्रस्ताव पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया था.

याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहती है कि धर्मनिरपेक्षता की भावना में सभी धर्मों के सिद्धांतों को स्कूल में पढ़ाया जाना चाहिए और यह धर्म पर आधारित नहीं हो सकता है. यह शिक्षा नैतिकता पर आधारित होनी चाहिए जो सभी धर्मों में सिखाया जाता है.

“यह कोई धार्मिक दस्तावेज नहीं है”

सुनवाई के दौरान बेंच ने भगवद गीता को लेकर मौखिक रूप से कहा, यह एक तरह का नैतिक विज्ञान पाठ है. इस पर याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील ने कहा कि नैतिक विज्ञान अभी भी तटस्थ (Neutral) है. बेंच ने कहा, यह पहल सिर्फ शिक्षा को पेश करने के लिए है. डिवीजन बेंच ने आगे कहा, यह हमारी संस्कृति है, यह कोई धार्मिक दस्तावेज नहीं है. वरिष्ठ वकील ने तब तर्क दिया कि किसी भी धार्मिक किताब के सिद्धांत संस्कृति नहीं हैं.

कोर्ट ने इस पर कहा, यह धार्मिक नहीं है, यह नैतिक है. यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. भगवद गीता सिर्फ मोरल साइंस है. कोर्ट ने आगे कहा, देखिए, भगवद गीता में कोई धार्मिक उपदेश नहीं है. “कर्म कर फल की इच्छा मत कर” यह बुनियादी मौलिक है, नैतिक सिद्धांत है. इसके बाद कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि उन्हें इस मामले में कोई तात्कालिकता नजर नहीं आ रही है. इसीलिए कोर्ट ने इस मामले को सूचीबद्ध कर दिया है.

क्या था पूरा मामला?

गुजरात के स्कूलों में साल 2022 में नई शिक्षा नीति के तहत स्कूल में भगवद गीता पढ़ाए जाने को लेकर ऐलान किया गया था. इस में कहा गया था कि भगवद गीता के सिद्धांतों को 6वीं से 12वीं क्लास के कोर्स में पढ़ाया जाएगा. नई शिक्षा नीति के तहत गीता पढ़ना अनिवार्य होगा. 6 क्लास से 12 के क्लास के छात्रों को गीता के सिद्धांत और मूल्यों को समझाया जाएगा.

इसी के बाद इस को लेकर कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि प्रस्ताव ने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन किया है.इसमें कहा गया था कि स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल करना स्पष्ट रूप से धार्मिक शिक्षा देना है.