कुड़मी आरक्षण की वो गूंज, जिससे झारखंड में एक साथ निपट गईं ये तीन पार्टियां

कुड़मी आरक्षण की वजह से कोयलांचल और कोल्हान के इलाके में आजसू और बीजेपी साफ हो गई. दोनों ही इलाके में बीजेपी और आजसू के बड़े नेता चुनाव हार गए. वहीं इस मांग को हवा देने वाली जयराम महतो की पार्टी ही वोटकटवा बनकर ही रह गई. आरक्षण की मांग की वजह से तेज हुए आंदोलन का सीधा फायदा हेमंत सोरेन को मिला.

 
झारखंड

झारखंड की जनता ने 24 साल का रिकॉर्ड तोड़ हेमंत सोरेन की सत्ता वापसी करा दी. सियासी गलियारों में हेमंत सोरेन की सत्ता वापसी की कई वजहें बताई जा रही है, लेकिन जमीन पर जो मुद्दा सबसे ज्यादा हावी रहा, वो कुड़मी आरक्षण है. खासकर छोटा नागपुर और कोल्हान के इलाके में.

क्या है कुड़मी आरक्षण की मांग?

बिहार, बंगाल और झारखंड में कुड़मी समुदाय का सियासी वर्चस्व है. अकेले झारखंड में कुड़मी जाति की आबादी 15 प्रतिशत के आसपास है. 1980 में कुड़मी समुदाय के लोगों ने खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग की. समुदाय का तर्क था कि पिछड़ेपन के आधार पर उन्हें यह हक मिलनी चाहिए.

झारखंड और बंगाल के कई हिस्सों में इसको लेकर आंदोलन हुए. उस वक्त झारखंड में विनोद बिहारी महतो कुर्मी का नेतृत्व करते थे. धीरे-धीरे कुड़मी समुदाय के मुद्दों को आजसू ने उठाना शुरू किया. सुदेश महतो इसके कर्णधार बने.

मुख्यमंत्री रहते अर्जुन मुंडा ने कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने का प्रस्ताव भी पास किया, लेकिन केंद्र ने डिमांड उस वक्त खारिज कर दी. हाल के दिनों में जयराम महतो ने नए सिरे से इस मांग को हवा दी है.

जयराम बीजेपी से 1932 के खतियानी नीति और कुड़मी आरक्षण को लागू करने की मांग लंबे वक्त से कर रहे थे. जयराम इसी मुद्दे के आधार पर चुनाव में भी उतरे थे. उनकी पार्टी का नाम झारखंड लोकतांत्रिक क्रांति मोर्चा है.

और साफ हो गईं तीन पार्टियां…

बात पहले आजसू की- 10 सीटों पर एनडीए गठबंधन के सहारे चुनावी मैदान में उतरने वाली आजसू सिर्फ एक पर जीत हासिल कर पाई है. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो खुद चुनाव हार गए हैं. सुदेश जिस सिल्ली सीट से चुनाव हारे हैं, वहां से जेएमएम के अमित महतो ने जीत हासिल की है.

अमित ने सिल्ली सीट पर 23867 वोटों से जीत हासिल की है. वहीं जयराम के उम्मीदवार को यहां पर 40 हजार से ज्यादा वोट आए हैं. इसी तरह गोमिया सीट पर आजसू के विधायक रहे लंबोदर महतो तीसरे नंबर पर पहुंच गए. यहां जयराम के उम्मीदवार पूजा कुमारी रनरअप रहीं.

ईचागढ़ की सीट पर भी जयराम फैक्टर काम किया. सुदेश महतो के उम्मीदवार को सिर्फ एक सीट मांडू में जीत मिली है. यहां पर उनके उम्मीदवार निर्मल महतो ने 231 वोटों से जीत हासिल की है.

रामगढ़ सीट पर कांग्रेस की ममता देवी ने जीत हासिल की. यहां आजसू के उम्मीदवार सुनीता देवी करीब 6800 वोटों से हार गईं. जयराम के उम्मीदवार को यहां पर 70 हजार वोट मिले हैं.

बीजेपी भी साफ हो गई- कुड़मी आरक्षण की मांग का असर बीजेपी के परफॉर्मेंस पर भी पड़ा है. बेरमो सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार रवींद्र पांडेय तीसरे नंबर पर पहुंच गए. यहां जयराम खुद चुनाव लड़ रहे थे और उन्हें 60 हजार वोट मिले हैं.

इसी तरह बोकारो सीट पर बीजेपी के दिग्गज बिरंची नारायण चुनाव हार गए. बिरंची को कांग्रेस की श्वेता सिंह ने पटखनी दी. श्वेता की इस जीत में कुड़मी आरक्षण की गूंज भी शामिल हैं. बोकारो सीट पर जयराम के उम्मीदवार को 39621 वोट मिले हैं.

कांके सीट का भी यही हाल है. यहां कांग्रेस पहली बार चुनाव जीती है. बीजेपी उम्मीदवार यहां पर करीब 1000 वोट से हार गए हैं. जयराम की पार्टी के उम्मीदवार को यहां 25965 वोट मिले हैं.

गिरिडीह सीट पर भी बीजेपी की हार की वजह जयराम के उम्मीदवार ही बने. यहां पर जेएमएम को जीत मिली है. चंदनकियारी सीट पर बीजेपी के नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी चुनाव लड़ रहे थे. बाउरी इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे हैं. जयराम के उम्मीदवार यहां दूसरे नंबर पर रहे.

टुंडी और तमाड़ सीट पर भी जयराम फैक्टर की वजह से एनडीए की हार हुई.

खुद भी नहीं जीत पाई JLKM- जयराम महतो भले कुड़मी आरक्षण के मुद्दे पर मुखर थे, लेकिन उनकी पार्टी का भी प्रदर्शन बेहतरीन नहीं रहा. जयराम खुद दो सीटों से चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन एक ही जीत पाए. जयराम महतो की पार्टी ने कुल 71 उम्मीदवार उतार थे, लेकिन एक-दो को छोड़कर बाकी दूसरे नंबर पर भी नहीं रहे.

झारखंड की 81 सीटों पर हुए इस चुनाव में जेएमएम को 34, बीजेपी को 21, कांग्रेस को 16, आरजेडी को 4, माले को 2 और आजसू, लोजपा (आर), जेएलकेएम जैसी पार्टियों को 1-1 सीटों पर जीत मिली है.