झारखंड में अकेले हेमंत सोरेन क्यों ले रहे शपथ, JMM की इस रणनीति से टेंशन में कांग्रेस!

झारखंड में हेमंत सोरेन के अकेले शपथ लेने की खबर है. गठबंधन सरकार में जो आमंत्रण का पोस्टर जारी किया गया है, उसमें भी हेमंत की ही तस्वीर है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर इसके पीछे की रणनीति क्या है?

 
हेमंत सोरेन

झारखंड में जीत के बाद हेमंत सोरेन सरकार का शपथग्रहण होने जा रहा है. 28 नवंबर यानी आज सिर्फ हेमंत सोरेन शपथ लेंगे. कैबिनेट का विस्तार बाद में किया जाएगा. गठबंधन सरकार होने के बावजूद हेमंत के अकेले शपथ लेने को लेकर सियासी चर्चाएं तेज है.

सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि हेमंत मंत्रिमंडल के साथ शपथ न लेकर अकेले शपथ ले रहे हैं. 2019 में हेमंत सोरेन ने 3 मंत्रियों के साथ शपथ लिया था. उस वक्त कांग्रेस कोटे से 2 मंत्रियों ने हेमंत के साथ शपथ लिया था.

कैबिनेट विस्तार क्यों नहीं?

झारखंड में इंडिया गठबंधन के भीतर 4 दल शामिल हैं. इस बार चारों दलों के विधायक चुनकर आए हैं. ऐसे में सभी की हिस्सेदारी सुनिश्चित करना हेमंत सोरेन के लिए माथापच्ची से कम नहीं है. झारखंड कैबिनेट में कुल 12 पद है.

जेएमएम अकेले 7 पद लेना चाह रही है. इसके लिए पार्टी की तरफ से संख्या को आधार बनाया जा रहा है. कांग्रेस भी पहले की तरह 4 सीटों पर अड़ी है. एक पर माले और एक पर आरजेडी का दावा है.

समय न होने की वजह से इस पेच को अभी नहीं सुलझाया गया है. 29 नवंबर को माले की बैठक प्रस्तावित है. इसमें माले की हिस्सेदारी पर बात फाइनल हो जाएगी. इसी तरह आरजेडी में भी एक मंत्री पद पर फैसला होना है.

अकेले शपथ लेने की ये भी 3 वजहें

हेमंत सोरेन ही चेहरा- इंडिया गठबंधन की तरफ से झारखंड का पूरा चुनाव हेमंत सोरेन के इर्द-गिर्द ही था. हेमंत की प्रचार की कमान संभाले हुए थे. बीजेपी के निशाने पर भी हेमंत सोरेन ही थे. हेमंत जेएमएम के साथ-साथ सहयोगी पार्टियों के लिए भी रैली कर रहे थे.

हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना ने मिलकर पूरे चुनाव में 200 से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया. इसके मुकाबले कांग्रेस और आरजेडी के नेता फिसड्डी दिखे. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कुल 10 रैलियां भी झारखंड में नहीं की.

अब जब जीत मिली है तो झारखंड मुक्ति मोर्चा की कवायद शपथग्रहण को हेमंत समारोह बनाने की है. शपथग्रहण के आमंत्रण को लेकर जो पोस्टर छपवाया गया है, उसमें अकेले हेमंत सोरेन की तस्वीर है.

2019 की तुलना में मजबूत- 2019 में हेमंत सोरेन की पार्टी को 30 सीटों पर जीत मिली थी और जेएमएम सरकार बनाने के जादुई आंकड़े से 11 कदम पार्टी दूर थी. उसे कांग्रेस की उस वक्त जरूरत थी. कांग्रेस के समर्थन न मिलने पर सरकार का चलना मुश्किल था.

अब परिस्थितियां बदल चुकी है. कांग्रेस ने भले ही इस बार भी 16 सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन सरकार में किंगमेकर की भूमिका में पार्टी नहीं है.

34 सीटों पर जीतने वाली जेएमएम आरजेडी और माले के समर्थन से आसानी से सरकार चला सकती है. हेमंत सोरेन की पार्टी इसलिए भी कांग्रेस को ज्यादा तरजीह नहीं दे रही है.

नंबर-2 की लड़ाई भी वजह- कांग्रेस की कोशिश हेमंत कैबिनेट में अपने एक मंत्री को नंबर-2 पोजिशन पर स्थापित करने की है. कांग्रेस इसके लिए डिप्टी सीएम का पद भी मांग चुकी है, लेकिन उसे हेमंत सोरेन सिरे से खारिज कर चुके हैं.

कहा जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से हेमंत के साथ अगर कोई विधायक मंत्री पद की शपथ लेते हैं तो वे स्वत: नंबर-2 की पोजिशन पर आ जाएंगे. जेएमएम ऐसा नहीं होने देना चाहती है.

जेएमएम की कवायद एक साथ सभी मंत्रियों को शपथ दिलाने की है. हालांकि, कांग्रेस नेताओं को शपथग्रहण के आखिरी वक्त तक कुछ सकरात्मक खबर मिलने की उम्मीद है.