गोंडा ट्रेन हादसा: 2 मिनट की देरी और पलट गई ट्रेन… रिपोर्ट में बड़ी लापरवाही का खुलासा
जानकारी के मुताबिक जिस ट्रैक पर ट्रेन हादसा हुआ वहां गाड़ी 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी. जबकि कॉशन ऑर्डर पर 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार को मेंटेन करना होता है. मतलब साफ है कि लोको पायलट को कॉशन आर्डर की कोई सूचना नहीं थी.
यूपी के गोंडा में रेल दुर्घटना को लेकर बड़ी लापरवाही की जानकारी सामने आई है. महज दो मिनट की देरी से ट्रेन दुर्घटना हो गई. गुरुवार को चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही ट्रेन नंबर 1509 का मनकापुर के पास एक्सीडेंट हो गया था. जानकारी में अब ये बात निकल कर सामने आ रही है कि ट्रैक में गड़बड़ी की वजह से यह हादसा हुआ. जॉइंट रिपोर्ट में डिरेलमेंट को लेकर स्पष्ट बताया गया है कि जिस जगह ट्रेन हादसा हुआ, वहां ट्रैक में कुछ गड़बड़ी थी. 350 मीटर के आसपास ट्रैक टूटी हुई थी और इसी वजह से यह दुर्घटना हुई. इस हादसे में 4 लोगों की जान चली गई.
जॉइंट रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रैक का रखरखाव कर रहे कर्मचारियों ने इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को आगाह किया था. रेलवे का नियम कहता है कि इस तरह की अगर कोई परेशानी ट्रैक का रखरखाव करने वाले कर्मचारी इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को देते हैं तो सबसे पहले कॉशन जारी किया जाता है. कॉशन का मतलब संज्ञान लेना है, जिसके मुताबिक नियमों को ध्यान में रखते हुए ही ट्रेन का परिचालन किया जाना चाहिए.
स्टेशन मास्टर को देर से मिला कॉशन आर्डर
मिली जानकारी के मुताबिक दोपहर 2:28 पर यह ट्रेन स्टेशन से निकली जबकि 2:30 पर स्टेशन मास्टर को कॉशन आर्डर जारी हुआ. नियम के मुताबिक जिस जगह पर एक्सीडेंट हुई वहां पर कॉशन आर्डर के मुताबिक 30 किलोमीटर की अधिक रफ्तार से ट्रेन का परिचालन नहीं करना था. लेकिन जब तक स्टेशन मास्टर को कॉशन आर्डर प्राप्त होता तब तक ट्रेन उस जगह पर पहुंच चुकी थी, जहां ट्रैक में खराबी थी. जॉइंट रिपोर्ट में लिखा भी है कि 2:32 पर ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर गए.
रिपोर्ट से साफ है कि 2:28 पर जिस वक्त ट्रेन स्टेशन से गुजरी है, अगर 2 मिनट पहले कॉशन ऑर्डर स्टेशन मास्टर को मिल गया होता तो शायद इतनी बड़ी दुर्घटना नहीं होती.
कई सवाल जिसके जबाव नहीं
पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट को जब इस बात की जानकारी मिली कि वहां ट्रैक खराब है तो उन्होंने तत्काल प्रभाव से कॉशन ऑर्डर जारी कर दिया. यहां तक तो मामला सही है लेकिन नियमों के मुताबिक एक बार जब कॉशन जारी कर दिया जाता है तो जब तक इस कॉशन की तामील ना हो तब तक उस ट्रैक को प्रिजर्व करने का काम भी इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के लोगों का है. तकनीकी रूप से इसको ऐसे समझें कि जब तक कॉशन लागू नहीं हो जाता तब तक उसे पूरे ट्रैक को प्रिजर्व करने का काम इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट का होता है.