हाथरस भगदड़ में लापरवाही के लिए क्या सिर्फ आयोजक ही जिम्मेदार? क्या कहता है कानून

हाथरस में भगदड़ होने के चलते 121 लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद हर तरफ भगदड़ को लेकर कानून की मांग उठने लगी. हालांकि इससे पहले भी भगदड़ के मामले देश में सामने आए हैं और कोर्ट ने इन मामलों पर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं. चलिए जानते हैं इन मामलों पर क्या कहता है कानून

 
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हाथरस में भगदड़ का मामला सामने आने के बाद धार्मिक आयोजनों में सख्त प्रबंधन के लिए स्पष्ट कानून बनाने की मांग देश के विभिन्न हिस्सों से उठने लगी है. जबकि देश में पहले से ही समुचित कानून मौजूद हैं और पहले घटित ऐसी ही दर्दनाक घटनाओं के मद्देनजर हायर ज्यूडीशरी ने व्यवस्थाएं भी दी हैं.

सवाल ये है कि इस घटना में क्या सिर्फ आयोजक ही लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं? पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों का कोई कर्तव्य कानून के तहत नहीं था? जूरिस्ट ज्ञानंत सिंह, अभिषेक राय और डीके गर्ग समेत अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि धार्मिक आयोजनों में प्रबंधन के लिए कानून बनाया जाना हल नहीं है. हकीकत ये है कि ऐसे आयोजनों के लिए कानून, न्यायिक दिशा-निर्देश पर्याप्त हैं, लेकिन राज्य सरकारों, प्रशासन और पुलिस का रवैया बहुत लचर है.

समय-समय पर जारी हुए निर्देश

2013 में सबरीमाला और मध्य प्रदेश में हुई भगदड़ की घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट ने कड़े निर्देश जारी किए. यही नहीं 2005 में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए आपदा प्रबंधन कानून में सभी राज्यों ने ऐसे कार्यक्रमों के प्रबंधन को लेकर नियमों का निर्धारण किया. हालांकि यह साफ है कि लचर रवैये के चलते सभी नियमों, निर्देशों और कानून की हवा निकल गई. सवा सौ लोग खूनी भगदड़ की भेंट चढ़ गए और इसके बाद प्रशासन को सुध आई कि भीड़ बहुत ज्यादा आ गई थी.

जूरिस्ट के मुताबिक अगर धार्मिक आयोजन में भगदड़ जैसा मामला सामने आता है तो आयोजक के खिलाफ अभियोग चलाया जाता है. जबकि पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी समान रूप से जिम्मेदार हैं, क्योंकि कानूनी तौर पर उन्हें ऐसे आयोजनों का सटीक तौर पर प्रबंधन करना चाहिए, ताकि ऐसी कोई घटना ना हो. वकीलों ने बताया कि हायर ज्यूडीशरी ने यूं तो कई महत्वपूर्ण फैसले ऐसी घटनाओं को लेकर दिए हैं, लेकिन उनमें से कुछ एक में इतने समुचित दिशा-निर्देश हैं कि उनका अनुपालन किए जाने पर किसी भी सूरत में ऐसी घटना नहीं हो सकती. काश हाथरस में ऐसा होता तो जो लोग भगदड़ में जान गवां बैठे, वो अपने परिवार के साथ होते.

हायर ज्यूडीशरी के फैसले और निर्देश देश में कई दुखद भगदड़ के अनुभव का नतीजा रहे. इनमें ऐसी घटनाओं को रोकने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण कानूनी और न्यायिक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं.

1- राहुल जैन विरूद्ध या बनाम भारत संघ (वर्ष 2014)-

2013 में मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मंदिर में भगदड़ के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ प्रबंधन पर दिशानिर्देश जारी किए थे. अदालत ने इसकी जरूरत पर जोर दिया था.

  • स्थानीय अधिकारियों द्वारा पर्याप्त योजना और तैयारी की जाए.
  • भीड़ पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं
  • बड़ी सभाओं को प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त पुलिस कर्मियों की तैनाती की जाए
  • भीड़ का मार्गदर्शन करने के लिए उचित चिन्ह और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली सुनिश्चित की जाए

2-कुंभ मेला भगदड़ पर संज्ञान जनहित याचिका (साल 2013)- इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया. राज्य सरकार द्वारा एक विस्तृत भीड़ प्रबंधन योजना की तैयारी को लेकर कई निर्देश जारी किए गए. इनमें इलाज की सुविधाएं प्रमुख थी.

3-सबरी माला मंदिर में भगदड़ (वर्ष 2011)- केरल में सबरी माला मंदिर में भगदड़ के बाद केरल हाईकोर्ट ने विशिष्ट निर्देशों के साथ हस्तक्षेप किया.

  • किसी भी समय मंदिर में जाने की अनुमति देने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या को सीमित करना
  • भीड़ प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए बुकिंग सिस्टम लागू करना
  • वास्तविक समय की निगरानी और समन्वय के लिए एक केंद्रीकृत कमांड सेंटर की स्थापना

4- बेंगलुरु के आतिशबाजी शो पर कर्नाटक हाईकोर्ट (साल 2009)- कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक आतिशबाजी शो के दौरान भगदड़ पर राज्य सरकार को निर्देश जारी किए-

  • सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए विस्तृत जोखिम मूल्यांकन और सुरक्षा योजना तैयार करना
  • स्थानीय अग्निशमन और आपातकालीन सेवाओं के साथ समन्वय सुनिश्चित करना
  • सुरक्षा नियमों का प्रवर्तन और गैर-अनुपालन के लिए दंड दिया जाना

5-धार्मिक समारोहों में सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश (साल 2000)-धार्मिक समारोहों में कई घटनाओं के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक दिशानिर्देश जारी किए-

  • बड़े पैमाने पर मतदान की उम्मीद वाले कार्यक्रमों के लिए अनिवार्य भीड़ नियंत्रण का इंतेजाम करना.
  • प्रवेश करने और बाहर निकलने के लिए दरवाजे, जगह सुनिश्चित करना.
  • इवेंट स्टाफ और स्वयंसेवक (volunteer) को नियमित सुरक्षा अभ्यास की ट्रेनिंग दी जाए.

प्रमुख निर्देश जिन पर आमतौर पर पुलिस-प्रशासन द्वारा जोर दिया जाना चाहिए-

  1. बेहतर योजना– अधिकारियों को जोखिम मूल्यांकन और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल सहित बड़ी भीड़ के प्रबंधन के लिए योजनाएं तैयार करनी चाहिए.
  2. वास्तविक समय की निगरानी– भीड़ की प्रभावी ढंग से निगरानी और प्रबंधन करने के लिए सीसीटीवी कैमरे और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली जैसी लाउड स्पीकर तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
  3. मेडिकल की सुविधा- संभावित हताहतों से निपटने के लिए मेडिकल सुविधाओं और आपातकालीन टीमों का मौजूद होना जरूरी.
  4. सार्वजनिक जागरूकता- भीड़ का मार्गदर्शन करने और भीड़ में घबराहट भगदड़ को रोकने के लिए उचित संकेत, घोषणाएं और सूचना प्रसार की व्यवस्था करनी चाहिए.
  5. कानून प्रवर्तन के साथ सहयोग-आपात स्थिति के मामले में पर्याप्त सुरक्षा के समय पुलिस और आपातकालीन सेवाओं के साथ बातचीत करना दोनों के बीच कोआर्डिनेशन स्थापित करना.

क्या कहते हैं जूरिस्ट

जूरिस्ट की माने तो ये अदालती फैसले और निर्देश बड़े समारोहों के दौरान भगदड़ को रोकने और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में सावधानीपूर्वक योजना, तकनीक और अंतर-एजेंसी के कोआर्डिनेशन के महत्व को रेखांकित करते हैं. हाथरस की घटना कड़े प्रबंधन कानूनों के महत्व और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयोजकों और अधिकारियों की जिम्मेदारी की याद दिलाती है. कानूनी ढांचे का पालन बड़ी सभाओं से जुड़े जोखिमों को काफी हद तक कम कर सकता है और भविष्य में ऐसी दुखद घटनाओं को रोक सकता है.

देश में क्या है कानून

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023- आईपीसी की जगह लेने वाले बीएनएस में भगदड़ जैसी घटनाओं से संबंधित विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं.

धारा 106-लापरवाही से काम करने पर मौत इस धारा में जल्दबाजी या लापरवाही से किए गए काम के कारण होने वाली मौत को शामिल किया गया है, जिससे सजा को पांच साल तक की कैद तक बढ़ा दिया गया है. मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के लिए यह समय दो साल तक रहता है.

पहले यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 धारा 304ए में थी- जिसमें किसी की मौत का कारण लापरवाही होने के चलते इसका इस्तेमाल किया जाता था. यह धारा उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहां लापरवाही के कारण मौतें होती हैं, जैसे अपर्याप्त भीड़ प्रबंधन का होना. इसमें जल्दबाजी या लापरवाही से की गई मौत के लिए दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

धारा 336, 337, और 338– जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्य ये धाराएं उन कारगुजारियों को लेकर हैं, जो दूसरों के जीवन या सुरक्षा को खतरे में डालते हैं. वे लापरवाही के कारण होने वाले विभिन्न प्रकार के नुकसान को कवर करते हैं- धारा 336-जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कार्य, तीन महीने तक की जेल या जुर्माने से दंडनीय धारा 337- जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य से चोट पहुंचाने पर छह महीने तक की जेल या जुर्माना हो सकता है

धारा 338- जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य से गंभीर चोट पहुंचाने पर दो साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005-

यह अधिनियम आपदा तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है, जिसमें बड़ी सभाओं के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश भी शामिल हैं. पर्याप्त सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991-यह अधिनियम सार्वजनिक कार्यक्रमों में संभावित दुर्घटनाओं के लिए बीमा कवरेज को अनिवार्य करता है, जिससे पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित होता है. भगदड़ जैसी घटनाओं से होने वाली देनदारियों को कवर करने के लिए आयोजकों को पर्याप्त बीमा सुरक्षित करना चाहिए.

स्थानीय नगरपालिका कानून और दिशानिर्देश-

विभिन्न राज्यों और नगर पालिकाओं के पास सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान भीड़ प्रबंधन के लिए विशिष्ट कानून और दिशानिर्देश हैं. इन विनियमों के लिए आयोजकों को अनुमति प्राप्त करने और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने की आवश्यकता होती है, जिसमें आपातकालीन मेडिकल सहायता और उचित भीड़ नियंत्रण मापक के प्रावधान शामिल हैं. कानून प्रवर्तन एजेंसियों की प्रवर्तन और जवाबदेही भूमिका पुलिस और स्थानीय अधिकारी बड़ी सभाओं के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा की देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं. उनके निर्देशों का अनुपालन न करने पर आयोजकों को कानूनी नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.