UP विधानसभा में पास, फिर क्यों विधान परिषद में BJP ने ही लटकाया नजूल विधेयक?

कल तक इस कानून की पैरोकार रही योगी सरकार आज यू टर्न लेकर विधेयक को प्रवर समिति में भेजकर अपनी मुसीबत टाल दी है. राजनैतिक विश्लेषक इसके पीछे आगामी विधानसभा का उपचुनाव और 2027 से पहले लोगों की नजर में अमानवीय बनने से खुद को बचाने का प्रयास है.

 
 योगी आदित्यनाथ

आखिरकार संगठन सरकार पर भारी पड़ ही गया. नजूल संपत्ति विधेयक 2024 को सरकार ने प्रवर समिति को भेज दिया है. प्रवर समिति विधेयक का अध्ययन कर दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी. विधानमंडल के सदस्यों के मांग के अनुरूप संभावित संशोधन के साथ समिति अपने सुझाव सरकार को देगी. बीजेपी विधायकों के विरोध के आगे सरकार को झुकना पड़ा और अब इसे संशोधित कर के ही दुबारा विधानसभा में पेश किया जाएगा. इसका मतलब है कि अब ये विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया है.

बुधवार को विधानसभा में बीजेपी के विधायकों हर्षवर्धन वाजपेयी और सिद्धार्थ नाथ सिंह और सरकार के नजदीकी माने जाने वाले राजा भईया ने बिल पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग उठाई थी. हालांकि संख्या बल के आधार पर इसे पास करा लिया गया था. गुरुवार को जब बिल को विधान परिषद में रखा गया तो यहां भी सरकार को अपनों की ही नाराज़गी झेलनी पड़ी. विधान परिषद में नेता सदन केशव प्रसाद मौर्या ने जैसे ही ये विधेयक रखा वैसे ही BJP के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधानपरिषद सदस्य भूपेन्द्र चौधरी इस विधेयक पर असहमत नजर आए. ये सरकार के लिए असहज स्थिति थी.

विधान परिषद में क्यों अटका नजूल कानून?

भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि ‘अभी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है’ इसलिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाए. विधान परिषद के सभापति ने आग्रह को स्वीकार किया और इसे प्रवर समिति में भेज दिया. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि सत्ता पक्ष की तरफ से संशोधन मांगा जाए. हमेशा संशोधन विपक्ष ही मांगता है. प्रवर समिति में बिल को भेजने से बीजेपी के कई विधायक खुश दिखें. हर्षवर्धन वाजपेयी ने बुधवार को इस विधेयक पर विधानसभा में आपत्ति जताई थी लेकिन अगले दिन उनके सुर बदले हुए थे.

उन्होंने कहा कि उनकी आपत्ति बिल के विरोध में नहीं थी बल्कि विधेयक को और बेहतर बनाने के लिए थी. सबसे ज्यादा नजूल की जमीन का मामला मेरे विधानसभा क्षेत्र में है इसलिए मुझे इसपर बोलना ही था. लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी लोगों को इससे दिक्कत नहीं है. बलरामपुर, गोंडा, बहराईच के कई विधायकों से मेरी बात हुई वो भी मेरे सुझाव से सहमत थे.

हर्षवर्धन वाजपेई ने कहा कि कोर्ट के भी कई फैसले हैं, जिसमें सरकार को ये कोर्ट की तरफ से सुझाव दिया गया है कि नजूल की सम्पत्ति पर लम्बे समय से रह रहे लोगों के साथ सरकार डेवलपमेंट कर सकती है. पीएम आवास योजना की ही तरह यहां भी उनके लिए आवासीय योजना बन सकती है जो लम्बे समय से यहां काबिज हैं. स्लम एरिया के साथ साथ विकास मॉडल पर भी काम हो सकता है.

प्रवर समिति में विधेयक भेजकर सरकार ने मुसीबत टाली

कल तक इस कानून की पैरोकार रही योगी सरकार आज यू टर्न लेकर विधेयक को प्रवर समिति में भेजकर अपनी मुसीबत टाल दी है. राजनैतिक विश्लेषक इसके पीछे आगामी विधानसभा का उपचुनाव और 2027 से पहले लोगों की नजर में अमानवीय बनने से ख़ुद को बचाने का प्रयास है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना और जेपीएस राठौर तक इस बिल की खूबियां गिना रहे थे. और अपने ही विधायकों को इसे ठीक से पढ़ने की सलाह तक दे रहे थे जबकि इनके अपने विधायक इस मुद्दे पर कुछ भी सुनने को तैयार नही थे. इसके साथ नजूल की जमीन पर बसे लोगों में बड़ी संख्या अनुसूचित जाति से जुड़े लोगों की है जिनकी नाराज़गी झेलने की स्थिति में योगी सरकार बिल्कुल नहीं है.

प्रवर समिति में बिल को भेंजे जाने के बाद भी सपा इस मुद्दे पर सरकार को लगातार घेरने की कोशिश में है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा कि नजूल की जमीन पर सबसे ज्यादा कब्जा बीजेपी के नेताओं की है इसलिए सरकार पहले अपने लोगों से बिल का विरोध कराती है फिर प्रवर समिति में भेजती है. सरकार की मंशा ही नही है कि नजूल की जमीन को बीजेपी नेताओं से खाली कराया जाए. कांग्रेस ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि जबतक सरकार बिल को वापस नही लेती कांग्रेस का विरोध जारी रहेगा.